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indian farming

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Tuesday 14 June 2016

Rice(dhan,chawal) farming

धान (चावल) महत्वपूर्ण खाद्य स्रोत है और धान (चावल) आधारित पद्धति खाद्य सुरक्षा, गरीबी उन्मूलन और बेहतर आजीविका के लिए जरूरी है। विश्व में धान (चावल) के कुल उत्पादन का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा कम आय वाले देशों में छोटे स्तर के किसानों द्वारा उगाया जाता है। इसलिए विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक विकास और जीवन में सुधार के लिए दक्ष और उत्पादक धान (चावल) आधारित पद्धति आवश्यक है। अतंर्राष्ट्रीय धान (चावल) वर्ष 2004 ने धान (चावल) को केन्द्र बिंदु मानकर कृषि, खाद्य सुरक्षा, पोषण, कृषि जैव विविधता, पर्यावरण, संस्कृति, आर्थिकी, विज्ञान, लिंगभेद और रोजगार के परस्पर संबंधों को नये नजरिये से देखा है। अंतर्राष्ट्रीय धान (चावल) वर्ष, ‘सूचना प्रदाता’ के रूप में हमारे समक्ष है ताकि सूचना आदान-प्रदान, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और ठोस कार्यों द्वारा धान (चावल) उत्पादक देशों और अन्य सभी देशों के मध्य समन्वय हो सके, जिससे धान (चावल) आधारित पद्धति का विकास और उन्नत प्रबंधन किया जा सके। यह शुरूआत सामूहिक रूप से काम करने का एक सुअवसर है ताकि धान (चावल) के टिकाऊ विकास और धान (चावल) आधारित पद्धतियों में बढ़ते पेचीदा मुद्दों को आसानी से सुलझाया जा सके। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की खुदाइयों में चावल के अवशेष मिले है वैज्ञानिकों का मत है कि भारत में चावल ईसा से 5000 वर्ष पूर्व से उगाया जाता रहा है। चावल का उल्लेख आयुर्वेद एवं हिन्दू ग्रन्थों में भी है। चावल का उपयोग भारत में वैदिक धार्मिक आदि कार्यो में आदिकाल से होता आ रहा है। इन्हीं को आधार मानकर चावल का उत्पत्ति स्थल भारत तथा वर्मा को माना गया। खेती:- प्रमुखतः चीन, भारत और इंडोनेशिया में शुरू हुई, जिससे धान (चावल) की तीन किस्में पैदा हुई – जेपोनिका, इंडिका और जावानिका। पुरातत्व प्रमाणों के अनुसार धान (चावल) की खेती भारत में 1500 और 1000 ईसा पूर्व के मध्य शुरू हुई। 15वीं और 16वीं सदी के पुराने आयुर्वेदिक साहित्य में धान (चावल) की विभिन्न किस्मों का वर्णन आता है, विशेषकर सुगंधित किस्मों का, जिनमें औषधीय गुणो की भरमार थी। धान (चावल) की खेती के लंबे इतिहास और विविध वातावरण में इसे उगाकर धान (चावल) को बेहद अनुकूलता प्राप्त हुई। अब यह अलग-अलग वातावरण, गहरे पानी से लेकर दलदल, सिंचित और जलमग्न स्थितियों के साथ शुष्क ढलानों पर भी उगाया जाने लगा है। शायद किसी भी फसल से ज्यादा धान (चावल) को अलग- अलग भौगोलिक, जलवायुवीय और कृषि स्थितियों में उगाया जा सकता है। एशियाई उत्पत्ति से धान (चावल) अब 113 देशों में उगया जाता है और विभिन्न भूमिकाएं निभाता है जो खाद्य सुरक्षा के महत्वपूर्ण मुद्दों के साथ- साथ ग्रामीण और आर्थिक विकास से भी संबंधित है। प्रति वर्ष धान (चावल) लगभग 151.54 मि. हैक्टर क्षेत्र में बोया जाता है और इसका वार्षिक उत्पादन 593 मी. टन है और औसत उत्पादकता 3.91 टन/हैक्टर है (एफ ए ओ आंकड़े 2002)। सन् 1961 से पिछले चार दशकों में क्रमशः क्षेत्र, उत्पादन और उत्पादकता में 3.12, 174.9 और 109.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। एशिया के अलावा अफ्रीका, लैटिन अमेरिका, संयुुक्त राष्ट्र अमेरिका और आस्ट्रेलिया में धान (चावल) की खेती की जाती है। यूरोपीय संघ में भी इसकी सीमित खेती होती है। प्रमुख धान (चावल) उत्पादक देशों का वर्णन सारणी में दिया जा रहा है। धान (चावल) की खेती एशिया में 136.07 मिलियन हैक्टर, अफ्रीका में 7.67 मिलियन हैक्टर और लैअिन अमरीका में 5.09 मिलियन हैक्टर में होती है। तीन महाद्वीपों में वार्षिक धान (चावल) उत्पादन क्रमशः 539.84, 16.97 और 19.54 मिनियन टन और औसत उत्पादकता 2.97, 2.21 और 2.84 टन/हैक्टर है। सन् 1961 से 2000 तक विश्व धान (चावल) उत्पादन 265 से 561 मिलियन टन यानी लगभग दुगुना हो गया। अफ्रीका में धान (चावल) उत्पादन में 6 से 15 टन (153 प्रतिशत), एशिया में 286 से 470 मिलियन टन (65 प्रतिशत) और लेटिन अमेरिका में 8 से 18 मिलियन टन (100 प्रतिशत) बढ़त हुई। इसी दौरान विश्व भर में धान (चावल) उत्पादन में 2.11 से 3.75 टन/हैक्टर (78 प्रतिशत) की बढ़ोत्तरी हुई। अफ्रीका में 1.75 से 2.18 टन प्रति हैक्टर (24 प्रतिशत बढ़त) एशिया में 2.41 से 3.49 टन प्रति हैक्टर (45 प्रतिशत) और दक्षिण अमेरिका में 1.72 से 3.19 टन प्रति हैक्टर (86 प्रतिशत) बढ़ोतरी हुई है। विकासशील देशों के ग्रामीण इलाकों में धान (चावल) आधारित उतपादन पद्धतियों और संबद्ध कटाई उपरांत क्रियाओं में लगभग एक अरब लोगांे को रोजगार मिलता है। प्रौद्योगिकी विकास ने धान (चावल) उत्पादन में काफी सुधार किया है लेकिन कुछ प्रमुख धान (चावल) उत्पादक देशों में उत्पादन में अंतर विद्यमान है। तीनों महाद्वीपों के प्रमुख धान (चावल) उत्पादक देश क्षेत्र, उत्पदन, उत्पादकता और आधुनिक किस्मों की खेती की दृष्टि से अलग-अलग है। इन सभी महाद्वीपों और देशों में उत्पादकता में अत्यधिक सुधार के बावजूद बेहद अंतर व्याप्त है, यहां तक कि उच्च उत्पादक धान (चावल) किस्मों का क्षेत्र भी 25 से 100 प्रतिशत के बीच में है। पादप प्रजनन गतिविधियों में प्रगति का एक प्रमुख कारक कई किस्मांे का जारी होना है जो एक अरसे से अपनाई जा रही है। सन् 1965 से एशिया में सर्वाधिक किस्मों का विकास हुआ है, तत्पश्चात लैटिन अमेरिका (239) और अफ्रीका (103) है। विश्लेषण के अनुसार 1986 से 1991 में सर्वाधिक (400) किस्में जारी की गयी। तत्पश्चात 1976-1980 में (374) और 1981-85 में (373) का स्थान रहा। 1965-1991 के दौरान हर पांच वर्षो में जारी किस्मों की संख्या 1970 और 1980 के दशक में सर्वाधिक रही। एशिया में भारत ने सर्वाधिक धान (चावल) किस्मों का विकास किया (643), तत्पश्चात कोरिया (106), चीन (82), म्यांमार (76), बंगला देश (64) और वियतनाम (59) है। पिछले तीन दशकों से 632 किस्मों का विकास किया गया और भारत के विभिन्न क्षेत्रों के लिए केंद्रीय राज्य किस्म विमोचन समितियों द्वारा व्यावसायिक खेती के लिए ये किस्में जारी की गयीं। कुल 632 किस्मों में से 374 (59प्रतिशत) किस्में सिंचित क्षेत्रों, 123 (19.3 प्रतिशत) बारानी ऊथली तलाऊ भूमि के लिए, 87 (13.7 प्रतिशत) बारानी ऊपजाऊ भूमि के लिए, 30 (4.7 प्रतिशत) बारानी अर्द्ध-गहरे पानी के लिए, 14 (2.2 प्रतिशत) गहरी जल स्थितियों के लिए और 33 (5.2 प्रतिशत) पहाड़ी परिस्थितियों के लिए जारी की गयीं। कुल मिलाकर उच्च उत्पादक किस्मों का देश के कुल धान (चावल) क्षेत्र में 77 प्रतिशत योगदान है। सन् 1968 में केवल दो धान (चावल) उत्पादक जिले ऐसे थे जिनमें 2 टन प्रति हैक्टर से ज्यादा उत्पादन होता था, लेकिन 2002 में 44 प्रतिशत धान (चावल) उत्पादक जिलों या 103 जिलों में 3 टन प्रति हैक्टर से ज्यादा धान (चावल) की उपज हो रही है। सन 1968 में शून्य की तुलना में अब 28 जिलों में 3 टन प्रति हैक्टर स अधिक धान (चावल) की उपज मिलती है। इससे साफ है कि धान (चावल) उत्पादन बढ़ाने में देश और विदेश स्तर पर हुए अनुसंधन प्रयासों से महत्वपूर्ण प्रगति हुई है। धान (चावल) हमारे देश की प्रमुख फसल है। देश में लगभग 70-80 प्रतिशत जनता का भरण-पोषण् इसी फसल के द्वारा होता है। धान (चावल) की खेती विभिन्न भौगोलिक परिस्थितियों में लगभग 4 करोड़ 49 लाख हैक्टर क्षेत्र (2001-02) में की जाती है। प्रायः सभी राज्यों में यह फसल उगाई जाती है, किंतु जहां अधिक वर्षा और सिंचाई का प्रबंध है, वहां पर इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। धान (चावल) का उत्पादन लगभग 9 करोड़ 33 लाख टन (2001-02) तक पहुंच गया है। राष्ट्रीय स्तर पर धान (चावल) की औसत पैदावार 2.08 टन/ हैक्टर (2001-02) है। अधिक पैदावार के लिए खाद और सिंचाइ का अधिक उपयोग करने और धान (चावल) की उन्नत किस्मों के प्रचलन से लगभग पिछले दो दशकों में धान (चावल) की पैदावार में व्यापक वृद्धि हुई है, फिर भी इसकी औसत पैदावार इसकी उपयोग क्षमता स काफी कम है। हमारे देश में धान (चावल) की खेती मुख्यतः तीन परिस्थितियों में की जाती है 1. वर्षा आश्रित ऊंची भूमि 2. वर्षा आश्रित निचली भूमि और 3. सिंचित भूमि। यदि धान (चावल) की फसल को वैज्ञानिक तरीके से उगाया जाये और कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रख् तो निश्चित रूप से इसकी उपज में 15 से 20 प्रतिशत तक की वृद्धि हो सकती है। इसके लिए मुख्य सस्य क्रियाओं का विवरण इस प्रकार है- भूमि का चुनाव और तैयारी धान (चावल) की खेती के लिए अच्छी उर्वरता वाली, समतल व अच्छे जलधारण क्षमता वाली मटियार चिकनी मिट्टी सर्वोतम रहती है। सिंचाई की पर्याप्त सुविधा होने पर हल्की भूमियों में भी धान (चावल) की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है। जिस खेत में धान (चावल) की रोपाई करनी हो, उसमें अप्रैल-मई में हरी खाद के लिए ढैंचे की बुवाई 20-25 कि.ग्रा. बीज प्रति हैक्टर की दर से करें। आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहें ओर जब फसल 5-6 सप्ताह की हो जाए तो उसे मिट्टी में अच्छी तरह मिला दें, तथा खेत में पानी भर दें, जिससे ढैंचा अच्छी तरह से गल-सड़ जाए। अगर हरी खाद का प्रयोग नहीं कर रहे हों तो 20-25 टन गली-सड़ी गोबर की खाद प्रति हैक्टर की दर से खेत में बिखेरकर अच्छी तरह जुताई की जाऐं। उन्नतशील किस्मों का चुनाव धान (चावल) की खेती के लिए अपने क्षेत्र विशेष के लिए उन्नत किस्मों का ही प्रयोग करना चाहिए जिसस कि अधिक से अधिक पैदावार ली जावें। धान (चावल) की प्रमुख किस्में नीचे दी जा रही हैः- अगेती किस्में (110-115 दिन): इनमें मुख्य रूप से पूसा 2-21, पूसा-33, पूसा-834, पी.एन.आर. -381, पी.एन.आर.-162, नरेन्द्र धान (चावल)-86, गोविन्द, साकेत-4 और नरेन्द्र धान (चावल)-97 आदि प्रमुख है। इनकी नर्सरी का समय 15 मई से 15 जून तक है तथा इनकी औसत पैदावार लगभग 4.5-6. टन/हैक्टेयर तक रहती है। मध्य अवधि की किस्में (120-125 दिन): किस्में इनमें मुख्य किस्में पूसा-169, पूसा-205, पूसा-44, स

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