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Friday 17 June 2016

Sugarcane(गनना) farming(खेती).....

Kiase Kare Ganne ki Unnat Kheti – गन्ने की खेती Agar aap bhi Ganne ki vaigyanik kheti karne ki soch rahe hai to niche diye gaye jankari se aap adhik se adhik munafa kama sakte hain. गन्ने की खेती को अगर कृषि वैज्ञानिक द्वारा बताए गए तकनीको से की जाये तो किसानो को बहुत हीं कम लागत में अच्छा benefit हो सकता है । भारत सरकार समय समय पर गन्ने की फसल की दाम निर्धारित करती रहती है जिससे किसानो को उचित दाम मिल सके | आइये जानते है की गन्ने की खेती में अच्छे पैदावार के लिए कैसे की भूमि की तैयारी करे, किस तरह की जलवायु होनी चाहिए, खाद कब और कितना देना चाहिए आदि । Ganne ki Kheti Kaise Kare / How to do Sugarcane Harvesting Agar aapke pass 1 acre ya usse adhik jamin ho to aap Ganne ki kheti kar ke accha munafa kama sakte hain. Ganne ko lagana aasan hai aur return bhi accha milta hai. To chaliye jante hai ganne kay kheti ki jankari taki aap accha se kheti kar ke accha kama sake: भूमि चयन व तैयारी / Preparation of Land कृषि वैज्ञानिको द्वारा गन्ने की खेती के लिए गहरी दोमट भूमि सबसे best मानी जाती है। भूमि की जुताई 40 से 60cm तक गहरी करनी चाहिए क्योंकि 75% जड़े इसी गहराई पर पाई जाती है । खेती शुरु करने से पहले भूमि की जुताई कर उसे भुरभुरा बना लें फिर उसपर पाटा चला कर उसे समतल बना लें । गन्ने की खेती के लिए खेत को खरपतवार से दूर रखना जरुरी है । खेत की आखिरी जुताई करने से पूर्व 10-12 ton प्रति एकड़ गाय की सड़ी हुई गोबर की खाद को भूमि में मिला देना चाहिए । जलवायु और बुआई का समय गन्ने की अच्छी बढ़ोतरी के लिए लम्बे समय तक गर्म और नम मौसम साथ हीं अधिक बारिश का होना best होता है । गन्ने की बुआई के लिए temperature 25 से 30 डिग्री से. होना चाहिए । October से November का महिना गन्ना लगाने का सबसे सही समय होता है । इसके अलावा February से march में भी गन्ने की खेती की जा सकती है । गन्ना 20 से 25 डिग्री से. तापमान पर अच्छा पनपता है । खाद प्रबंधन / Fertilizer Management गन्ने की अधिक उत्पादन के लिए प्रति hectare 300kg नत्रजन(nitrogen), 80kg स्फूर (Phosphorus) और 60kg पोटाश (potash) की अव्यश्कता होती है । नत्रजन को तीन बराबर भागो में मतलब प्रतेक भाग में 100kg अंकुरण के वक्त या फिर बुआई के 30 दिन , 90 दिन और 120 दिन के बाद खेत में डाल देना चाहिए और फिर फसल पर मिट्टी चढ़ा देना चाहिए । स्फूर (Phosphorus) और पोटाश (potash) की पूरी मात्रा गन्ना लगाते समय हीं खेत में दे देनी चाहिए । सिंचाई / जल प्रबंधन / Water Management गन्ने की खेती में गर्मी के दिन में 10 दिन और ठंड के दिन में 20 दिन के Interval पर खेत की सिंचाई करनी चाहिए। फवाड़ा विधि से सिंचाई करने पर उपज में वृद्धि होती है साथ ही पानी की बचत भी होती है। गन्ने की फसल को लगाने के 10 से 15 दिनों के बाद खेत में बनी पपड़ी तोड़ना बहुत अव्यश्क होता है इससे अंकुरण जल्दी होता है ओर खरपतवार भी कम आते है। गन्ने की फसल को गिरने से बचाने के लिए गुड़ाई कर के 2 बार फसल पर मिट्टी डाल देना चाहिए और गन्ने की पत्तियों को आपस में बांध देना चाहिए । रोग व किट नियंत्रण / Preventation from Kits & Flies गन्ने के बीज को नम गर्म हवा से उपचारित करने पर वे रोग रहित हो जाते है । फसल को रोगों से बचाने के लिए 600g डायथेम एम. 45 को 250 लीटर पानी के घोल में 5 से 10 मिनट तक डुबाना चाहिए। रस चुसने वाले कीड़ो का प्रकोप गन्नो पर ज्यादा होता है इसलिए इस घोल में 500ml मिलेथियान भी मिलाया जाना चाहिए । गन्ने के टुकड़ो को लगाने से पहले मिट्टी के तेल और कोलतार के घोल में दोनों सिरो को डूबा कर उपचारित करने से दीमक का प्रकोप कम हो जाता है । Related posts:

Chilli(मिृचा) Farming....

Mirch ki Kheti ko Kaise Kare – मिर्च की खेती Agar aap Mirchi ki adhunik kheti karne ki soch rahe hai to ise jarur padhe. Kaise kisan bhai Chilli ka business kar ke lakho kama rahe hain. मिर्च की खेती कोई भी आम इंसान और किसान भी कर सकता है क्योंकि इस खेती में बहुत ही कम खर्च में अच्छी आमदनी होती है। बाज़ार में मिर्च की अच्छी कीमत पाई जाती है। आज के date में local market में मिर्च का दाम लगभग Rs 80 से 100 – kgचल रहा है | Vitamin-A और vitamin-B से भरपूर, मिर्च की खेती अगर वैज्ञानिक तकनीको से की जाये तो किसानो को अच्छे फसल की प्राप्ति होती है। तो आइये जानते है कैसे करे मिर्च की खेती जिससे हमें अच्छे फसल की प्राप्ति हो | मिर्ची की खेती की जानकारी / How to start Chilli Farming Business आज के दौर में धीरे धीरे लोग खेती की तरफ लौट रहे हैं और यकीन मानिये मिर्ची की खेती एक ऐसा व्यापार है जो कम समय में काफी दिनों तक अच्छा मुनाफा दे सकता है | To agar aap Chilli farming ka business start karna chahate hai to vaigyanik tarike se apna kar accha khasa profit bana sakte hai | Mirchi ki kheti aur business karne ke liye niche diye gaye tips ko apnakar accha munafa kamaya jaa sakta hai. Agar aapke pass thodi se bhi jamin ho (1 acer) to aap mirch ka business kar ke aasani se 2 se 3 lakh kama sakte hain. Iske saath saath aap payaj ki bhi kheti ya bhindi ki bhi kheti kar sakte hain. भूमि की तैयारी खेती शुरू करने से पहले भूमि की inspection कर लेना अती आवश्यक है। मिर्च की खेती दोमट मिट्टी वाली भूमि पर करने से किसानो को खेती में सफलता मिलती है। ट्रेक्टर द्वारा भूमि की जुताई कर के उसे भुरभुरा कर लेना चाहिए। ऐसा करने से सरे खरपतवार साफ़ हो जाते है और फसल भी ज्यादा होती है। जब खेती के लिए भूमि की तैयारी कर रहें हो तभी सरे आवश्यक खाद का छिड़काव कर देना चाहिए । जलवायु मिर्च को किसी भी मौसम में उगा सकते है। लेकिन ज्यादातर मिर्च की खेती सर्दी के मौसम में करने से अधिक लाभ होता है। इसे उगाने के लिए कम तापमान की आवश्कता होती है। अतः मिर्च को शाम में लगभग 4 बजे के बाद रोपना चाहिए जब धुप कम हो जाये। धुप में मिर्च के पौधे को रोपने से पौधा मुड़झा जाता है। खाद कृषि वैज्ञानिक के अनुसार मिर्च की अच्छी उत्पादन के लिए कम से कम 250 से 300 क्विंटल सड़ी हुई गोबर का खाद, 70kg नत्रजन(nitrogen), 30kg फास्फोरस (phasphoras) और 50kg पोटाश (potash) प्रति हेक्टेयर की दर से भूमि में मिला देना चाहिए । इसके अलावा nitrogen की आधी और potash की पूरी मात्रा रोपन की अंतिम तैयारी के समय देना चाहिए। उसके बाद आधी बची हुई nitrogen को 30 से 40 दिन के बाद देना चाहिए। संकर बिज के लिए nitrogen 100kg, फास्फोरस 60kg और potash 80kg प्रति हेक्टयेर के दर से दिया जाना उचित होता है। पौधे का रोपन मिर्च के पौधे को गढ्ढे में इस प्रकार रोपें जिससे पौधे का आखरी पत्ता ज़मीन में सटे। मिर्च के पौधे रोपने समय दो पौधे की बिच की दूरी कम से कम 40 से 60 cm होनी चाहिए। पौधा रोपने के 15 से 20 मिनट बाद लोटे से पौधे में पानी पटाए। उसके बाद लगातार 3 से 4 दिन तक दोनों time सुबह और शाम को पानी पटाए । पौधे की सिचाई मिर्च की सफल खेती के लिए और अच्छे फसल के उत्पादन के लिए किसानो को सिचाई को ले कर सतर्क रहना चाहिए। मिर्च की खेती में पानी के बहाव का आने और जाने की क्रिया बराबर बनी रहनी चाहिए । मिर्च के फुल और फल लगने के समय भूमि में नमी का होना अत्यंत जरुरी है क्योंकि पानी के कमी से पौधे का विकाश रुक सकता है। इसकी वजह से फल की गिरने की संभावना बढ़ जाती है । किट पतंग से बचाओ मिर्च के पौधो में लगने वाले किटों की वजह से पत्तियां एक जगह हो कर छोटी हो जाती है और एक ओर मुड़ जाती है जिससे पौधे का विकाश रुक जाता है । किट लग जाने की वजह से पौधे में फुल बहुत हीं कम निकलते है साथ हीं फल की संख्या भी कम हो जाती है । कुछ किट ऐसे होते है जिसके लग जाने से पौधे ऊपर से निचे की ओर सूखने लगते है। पौधे में किट लग जाने से लगभग 35% उपज कम हो जाती है। अतः किटों से प्रभावित पौधों को जड़ से उखाड़ कर फेक देना चाहिए । सबसे अच्छी बात यह है की एक मिर्ची का पौधा लगभग 1 से 2 साल तक लगातार मिर्च देते रहता है और अगर अच्छे से पौधे का ख्याल रखा जाये तो कई बार 2 से 30 महीनो तक आपको मिर्च देता रहेगा | Yahi karan hai ki kai sare kisan bhai mirch ki kheti ke business mein lage hue hain.

Wednesday 15 June 2016

Lady finger (bhindi) farming..

Hindi Remedy Bhindi ki Kheti Kaise Kare aur Jankari – भिंडी खेती Agar aap Bhindi jise ladyfinger bhi bolte hai uksi kheti ke bare mein jankari chahte hai ya ise kaise kare to yahan par ako kuch acchi Bhindi farming ki information mil sakti hai | बाजार में बिकने वाली हरी सब्जियों में से एक सब्जी भिंडी(ladyfinger) भी होती है जो की लोगो के बिच बहुत हीं लोकप्रिय है। भिंडी में protien, carbohydrate, vitaminA, vitaminC, और vitaminB2 पाई जाती है। इसमें iodien की मात्रा अधिक पाई जाती है। अतः भिंडी की खेती करने से किसानो को बहुत लाभ हो सकता है। अगर आप भी भिंडी की खेती करने की सोच रहे है तो निचे दिए गए तरीको से खेती करे इससे आप कम खर्च में अधिक लाभ पा सकेंगे । भिंडी की खेती कैसे करे / Bhindi ki Kheti Kaise Kare Agar aap Bhindi ki farming karna chahte hai to aapko vaigyanik / scientific tareke se kheti karni hogi taki kam sama mein munafa kamaya jaa sake. Agar thik thara se kiya jaye to aap saath he saath tamatar ki uchit kheti kar ke lakho kama sakte hain. To chaliye jante hai ladyfinger farming step by step in Hindi language: भिंडी की खेती के लिए जलवायु अच्छे फसल की प्राप्ति के लिए सही मौसम की जानकारी होना बहुत हीं जरुरी होता है। मौसम की सही जानकारी ना होने से खेती में नुकसान हो सकता है । भिंडी की खेती करने के लिए गर्मी का मौसम सबसे उपयुक्त होता है। अच्छे फल की उत्पादन के लिए कम से कम 20 डिग्री से. तक का तापमान होना चाहिए। 40 डिग्री से. से अधिक तापमान होने पर फुल झड़ जाते है। भूमि की तैयारी खेती शुरू करने से पहले भूमि और मिट्टी दोनों की अच्छे से inspection कर लेना चाहिए इससे अच्छे फसल की प्राप्ति होती है। वैसे तो भिंडी की खेती किसी भी तरह के भूमि पर किया जा सकता है। लेकिन हल्की दोमट मिट्टी जिसमे जल निकासी अच्छी हो इसकी खेती के लिए सर्वोतम है। अतः भिंडी की खेती करने के लिए भूमि की कम से कम 2,3 बार जुताई कर के उसे फिर से समतल कर देना चाहिए। बिज / रोपन गर्मी के मौसम में 1 हेक्टेयर भूमि में लगभग 20kg बिज रोपने के लिए उत्तम होता है। वर्षा के मौसम में लगभग 15kg बिज रोपने के लिए काफी होता है। बिज में अच्छे अंकुर होने के लिए बिज को रोपने से पहले कम से कम 24 घंटे तक पानी में डाल कर छोड़ देना चाहिए। गर्मी के मौसम में भिंडी की रोपाई करना सबसे सर्वोतम होता है । भिंडी की रोपाई एक कतार (line) से करना चाहिए और हर line की दूरी कम से कम 25 से 30cm होनी चाहिए। रोपाई के वक़्त दो पौधों के बिच की दूरी कम से कम 20cm होनी चाहिए। वर्षा के मौसम में दो line की दूरी लगभग 40cm और दो पौधों के बिच की दूरी लगभग 30cm होनी चाहिए। गड्ढे की खोदाई/ खाद बिज रोपने से 20 दिन पहले गड्ढे की अच्छे से खोदाई कर के उसमे से सरे खरपतवार साफ़ कर लेना चाहिए । उसके बाद बिज रोपने के कम से कम 15 दिन पहले गड्ढे में लगभग 300 क्विंटल सड़ा हुआ गोबर का खाद मिला देना चाहिए । खाद के मुख्य elements में नत्रजन (nitrogen)-60kg, सल्फर (sulphur)- 30kg, और पोटाश (potash)-50kg को प्रति हेक्टर की दर से मिट्टी में देना चाहिए । बिज रोपने से पहले भूमि में nitrogen की आधी और sulphur,potash की पूरी मात्रा देनी चाहिए। बिज रोपने के बाद लगभग हर 30 दिन के अंतर पर nitrogen की बची हुई मात्रा को दो बार कर के देना चाहिए । किट/रोग से बचाओ भिंडी के पौधों में लगने वाले रोग व किट 4 प्रकार के होते है :- पीत शिरा रोग इस रोग की वजह से भिंडी के पौधों की पत्तियां और फुल पूरी तरह से पीली हो जाती है जिसकी वजह से पौधे का विकाश रुक जाता है । वर्षा के मौसम में इस रोग के लगने की सम्भावना अधिक होती है । इस रोग से प्रभावित हुए पौधे को जड़ से उखाड़ कर फेक देना चाहिए। इस रोग से बचने के लिए 1ml आक्सी मिथाइल डेमेटान को पानी में मिला कर पम्प द्वारा भिंडी के खेत में छिड़काव करना चाहिए । चूर्णिल आसिता इस रोग की वजह से भिंडी के पौधो की निचली पत्तीओं पर सफ़ेद चूर्ण जैसा पिला दाग पड़ने लगता है जो की बहुत हीं तेजी से बढ कर पुरे पौधे में फ़ैल जाती है । इसे जल्द से जल्द ना रोकने पर फल की 30% उत्पादन कम हो जाती है । इस रोग से बचने के लिए 2 kg गंधक(sulphur) को 1 लीटर पानी में घोल कर कम से कम 2,3 बार इसका छिड़काव करना चाहिए । उसके बाद हर 15 दिन पर इसका छिड़काव करते रहना चाहिए । प्ररोह / फल छेदक किट नाजुक तने में छेद कर देती है जिसकी वजह से तना सूखने लगता है और साथ ही साथ फुलो पर भी आक्रमण करती है जिसकी वजह से फल लगने से पहले फुल गिर जाते है । ज्यादातर ये किट वर्षा के समय लगती है। अतः इससे बचने के लिए सबसे पहले प्रभावित फूलो और तनों को काटकर फेक दे फिर 1.5 ml इंडोसल्फान को प्रति लीटर पानी में मिला कर कम से कम 2 से 3 बार इसका छिड़काव करे । जैसिड ये किट भिंडी के पौधे में लगे फुल,फल,पत्तियां और तने का रस चुसकर इन सब को नुकसान पहुंचती है जिसकी वजह से सरे प्रभावित फुल,फल,पत्तियां और तने गिर जाते है । उपज और फल की तोड़ाई किसानो को भिंडी की खेती गर्मी के मौसम में करने से ज्यादा benefit हो सकता है क्योंकि सभी मौसम के अपेक्षा गर्मी के मौसम में भिंडी की उपज अधिक होती है (कम से कम 65 से 70 क्विंटल प्रति हेक्टर तक)। लगभग 50 से 60 दिनों में फलो की तोड़ाई शुरु कर दी जाती है। फल की तोड़ाई हर 5 से 6 दिन के अंतर पर करनी चाहिए ।

Radish(mUlee) farming...

मूली की खेती मूली सामान्य विवरण:- मूली, सलाद के रूप में उपयोग की जाने वाली सब्जी है। उत्पत्ति स्थान भारत तथा चीन देश माना जाता है। सम्पूर्ण देश में विशेषकर गृह उद्यानों में उगाई जाती है। मूली में गंध सल्फर तत्व के कारण होती है। इसे क्यारियों की मेड़ों पर भी उगा सकते हैं। बीज बोने के 1) माह में तैयार हो जाती है। फसल अवधि 40-70 दिनों की है। औसत उपज प्रति हेक्टर 100 से 300 क्विंटल होती है। शीघ्र तैयार होने वाली सब्जी है। मूली की जड़ों में गन्धक, कैल्शियम तथा फाॅस्फोरस होता है। मूली की जड़ों का उपयोग किया जाता है, जबकि पत्तियों में जड़ों की अपेक्षा अधिक पोषक तत्व होते हैं। कैल्शियम, फाॅस्फोरस, आयरन खनिज मध्यम तथा विटामिन ‘ए’ अत्यधिक मात्रा में होता है। विटामिन ‘सी’ मध्यम होता है। वर्ष में तीन बार उगाई जा सकती हैं। गर्म, तेज-तीखा स्वाद, पाचक, कोष्ठवध्यता दायक, कृमिनाशक, वातनाशक, अनतिव ;।उमदवततीमंद्ध गाँठ, बवासीर में उपयागी। हृदय रोग, खाँसी, कुष्ठ रोग, हैजा में लाभदायक; उदर वायु रोग और गर्मी रोग में आरामदायक। रस कान के दर्द में आरामदायक (आयुर्वेद)। आवश्यकताएँ: जलवायु, भूमि, सिंचाई – शीतल जलवायु उपयुक्त होती है किन्तु गर्म वातावरण भी सह सकती है। 15 C से 20 C तापक्रम उपयुक्त माना जाता है। सभी प्रकार की भूमि उपयुक्त होती है, किन्तु भूमि में जड़ों के विकास के लिए भुराभुरापन रहना आवश्यक है। जल निकास भी आवश्यक है। भारी भूमि में जड़ो का विकास ठीक से नहीं होता है। इसलिए उपयुक्त नहीं मानी जाती है। सिंचाई की अधिक आवश्यकता होती है, 10-15 दिन के, अन्तर से सिंचाई की जा सकती है। मेड़ों पर लगी हुई फसल को अलग से पानी देने की आवश्यकता नहीं होती है। खाद एवं उर्वरक – 100 क्विंटल गोबर की खाद या कम्पोस्ट, 100 किलो नाइट्रोजन, 50 किलो फास्फोरस तथा 100 किला पोटाश प्रति हेक्टर आवश्यक है। गोबर की खाद, फास्फोरस तथा पोटाश खेत की तैयारी के समय तथा नाइट्रोजन दो भागों में बोने के 15 और 30 दिनों के अन्तर से देनी चाहिए। उर्वरक सामान्य विधि से देने चाहिए। उद्यानिक क्रियाएँ: बीज विवरण – प्रति हेक्टर बीज की मात्रा – 5-10 किलो बोने के समय अनुसार प्रति 100 ग्रा. बीज की संख्या – 30,000-45,000 अंकुरण – 70 प्रतिशत अंकुरण क्षमता की अवधि – 3-5 वर्ष बीज बोने का समय – समय – सितम्बर से जनवरी तक अन्तर – कतार – 30 सेमी., बीज-15 सेमी.। बीजों को क्यारियों में या क्यारियों की मेड़ों पर कतारों में बोना चाहिए। मिट्टी चढ़ाना – जड़ों को ढकने के लिए मिट्टी चढ़ाना आवश्यक है, क्यांेकि जड़ें अधिकतर भूमि के बाहर आ जाती हैं। खुदाई – जड़ों को कड़ी होने से पहले मुलायम अवस्था में ही खोद लेनी चाहिए।

Tuesday 14 June 2016

Rice(dhan,chawal) farming

धान (चावल) महत्वपूर्ण खाद्य स्रोत है और धान (चावल) आधारित पद्धति खाद्य सुरक्षा, गरीबी उन्मूलन और बेहतर आजीविका के लिए जरूरी है। विश्व में धान (चावल) के कुल उत्पादन का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा कम आय वाले देशों में छोटे स्तर के किसानों द्वारा उगाया जाता है। इसलिए विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक विकास और जीवन में सुधार के लिए दक्ष और उत्पादक धान (चावल) आधारित पद्धति आवश्यक है। अतंर्राष्ट्रीय धान (चावल) वर्ष 2004 ने धान (चावल) को केन्द्र बिंदु मानकर कृषि, खाद्य सुरक्षा, पोषण, कृषि जैव विविधता, पर्यावरण, संस्कृति, आर्थिकी, विज्ञान, लिंगभेद और रोजगार के परस्पर संबंधों को नये नजरिये से देखा है। अंतर्राष्ट्रीय धान (चावल) वर्ष, ‘सूचना प्रदाता’ के रूप में हमारे समक्ष है ताकि सूचना आदान-प्रदान, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और ठोस कार्यों द्वारा धान (चावल) उत्पादक देशों और अन्य सभी देशों के मध्य समन्वय हो सके, जिससे धान (चावल) आधारित पद्धति का विकास और उन्नत प्रबंधन किया जा सके। यह शुरूआत सामूहिक रूप से काम करने का एक सुअवसर है ताकि धान (चावल) के टिकाऊ विकास और धान (चावल) आधारित पद्धतियों में बढ़ते पेचीदा मुद्दों को आसानी से सुलझाया जा सके। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की खुदाइयों में चावल के अवशेष मिले है वैज्ञानिकों का मत है कि भारत में चावल ईसा से 5000 वर्ष पूर्व से उगाया जाता रहा है। चावल का उल्लेख आयुर्वेद एवं हिन्दू ग्रन्थों में भी है। चावल का उपयोग भारत में वैदिक धार्मिक आदि कार्यो में आदिकाल से होता आ रहा है। इन्हीं को आधार मानकर चावल का उत्पत्ति स्थल भारत तथा वर्मा को माना गया। खेती:- प्रमुखतः चीन, भारत और इंडोनेशिया में शुरू हुई, जिससे धान (चावल) की तीन किस्में पैदा हुई – जेपोनिका, इंडिका और जावानिका। पुरातत्व प्रमाणों के अनुसार धान (चावल) की खेती भारत में 1500 और 1000 ईसा पूर्व के मध्य शुरू हुई। 15वीं और 16वीं सदी के पुराने आयुर्वेदिक साहित्य में धान (चावल) की विभिन्न किस्मों का वर्णन आता है, विशेषकर सुगंधित किस्मों का, जिनमें औषधीय गुणो की भरमार थी। धान (चावल) की खेती के लंबे इतिहास और विविध वातावरण में इसे उगाकर धान (चावल) को बेहद अनुकूलता प्राप्त हुई। अब यह अलग-अलग वातावरण, गहरे पानी से लेकर दलदल, सिंचित और जलमग्न स्थितियों के साथ शुष्क ढलानों पर भी उगाया जाने लगा है। शायद किसी भी फसल से ज्यादा धान (चावल) को अलग- अलग भौगोलिक, जलवायुवीय और कृषि स्थितियों में उगाया जा सकता है। एशियाई उत्पत्ति से धान (चावल) अब 113 देशों में उगया जाता है और विभिन्न भूमिकाएं निभाता है जो खाद्य सुरक्षा के महत्वपूर्ण मुद्दों के साथ- साथ ग्रामीण और आर्थिक विकास से भी संबंधित है। प्रति वर्ष धान (चावल) लगभग 151.54 मि. हैक्टर क्षेत्र में बोया जाता है और इसका वार्षिक उत्पादन 593 मी. टन है और औसत उत्पादकता 3.91 टन/हैक्टर है (एफ ए ओ आंकड़े 2002)। सन् 1961 से पिछले चार दशकों में क्रमशः क्षेत्र, उत्पादन और उत्पादकता में 3.12, 174.9 और 109.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। एशिया के अलावा अफ्रीका, लैटिन अमेरिका, संयुुक्त राष्ट्र अमेरिका और आस्ट्रेलिया में धान (चावल) की खेती की जाती है। यूरोपीय संघ में भी इसकी सीमित खेती होती है। प्रमुख धान (चावल) उत्पादक देशों का वर्णन सारणी में दिया जा रहा है। धान (चावल) की खेती एशिया में 136.07 मिलियन हैक्टर, अफ्रीका में 7.67 मिलियन हैक्टर और लैअिन अमरीका में 5.09 मिलियन हैक्टर में होती है। तीन महाद्वीपों में वार्षिक धान (चावल) उत्पादन क्रमशः 539.84, 16.97 और 19.54 मिनियन टन और औसत उत्पादकता 2.97, 2.21 और 2.84 टन/हैक्टर है। सन् 1961 से 2000 तक विश्व धान (चावल) उत्पादन 265 से 561 मिलियन टन यानी लगभग दुगुना हो गया। अफ्रीका में धान (चावल) उत्पादन में 6 से 15 टन (153 प्रतिशत), एशिया में 286 से 470 मिलियन टन (65 प्रतिशत) और लेटिन अमेरिका में 8 से 18 मिलियन टन (100 प्रतिशत) बढ़त हुई। इसी दौरान विश्व भर में धान (चावल) उत्पादन में 2.11 से 3.75 टन/हैक्टर (78 प्रतिशत) की बढ़ोत्तरी हुई। अफ्रीका में 1.75 से 2.18 टन प्रति हैक्टर (24 प्रतिशत बढ़त) एशिया में 2.41 से 3.49 टन प्रति हैक्टर (45 प्रतिशत) और दक्षिण अमेरिका में 1.72 से 3.19 टन प्रति हैक्टर (86 प्रतिशत) बढ़ोतरी हुई है। विकासशील देशों के ग्रामीण इलाकों में धान (चावल) आधारित उतपादन पद्धतियों और संबद्ध कटाई उपरांत क्रियाओं में लगभग एक अरब लोगांे को रोजगार मिलता है। प्रौद्योगिकी विकास ने धान (चावल) उत्पादन में काफी सुधार किया है लेकिन कुछ प्रमुख धान (चावल) उत्पादक देशों में उत्पादन में अंतर विद्यमान है। तीनों महाद्वीपों के प्रमुख धान (चावल) उत्पादक देश क्षेत्र, उत्पदन, उत्पादकता और आधुनिक किस्मों की खेती की दृष्टि से अलग-अलग है। इन सभी महाद्वीपों और देशों में उत्पादकता में अत्यधिक सुधार के बावजूद बेहद अंतर व्याप्त है, यहां तक कि उच्च उत्पादक धान (चावल) किस्मों का क्षेत्र भी 25 से 100 प्रतिशत के बीच में है। पादप प्रजनन गतिविधियों में प्रगति का एक प्रमुख कारक कई किस्मांे का जारी होना है जो एक अरसे से अपनाई जा रही है। सन् 1965 से एशिया में सर्वाधिक किस्मों का विकास हुआ है, तत्पश्चात लैटिन अमेरिका (239) और अफ्रीका (103) है। विश्लेषण के अनुसार 1986 से 1991 में सर्वाधिक (400) किस्में जारी की गयी। तत्पश्चात 1976-1980 में (374) और 1981-85 में (373) का स्थान रहा। 1965-1991 के दौरान हर पांच वर्षो में जारी किस्मों की संख्या 1970 और 1980 के दशक में सर्वाधिक रही। एशिया में भारत ने सर्वाधिक धान (चावल) किस्मों का विकास किया (643), तत्पश्चात कोरिया (106), चीन (82), म्यांमार (76), बंगला देश (64) और वियतनाम (59) है। पिछले तीन दशकों से 632 किस्मों का विकास किया गया और भारत के विभिन्न क्षेत्रों के लिए केंद्रीय राज्य किस्म विमोचन समितियों द्वारा व्यावसायिक खेती के लिए ये किस्में जारी की गयीं। कुल 632 किस्मों में से 374 (59प्रतिशत) किस्में सिंचित क्षेत्रों, 123 (19.3 प्रतिशत) बारानी ऊथली तलाऊ भूमि के लिए, 87 (13.7 प्रतिशत) बारानी ऊपजाऊ भूमि के लिए, 30 (4.7 प्रतिशत) बारानी अर्द्ध-गहरे पानी के लिए, 14 (2.2 प्रतिशत) गहरी जल स्थितियों के लिए और 33 (5.2 प्रतिशत) पहाड़ी परिस्थितियों के लिए जारी की गयीं। कुल मिलाकर उच्च उत्पादक किस्मों का देश के कुल धान (चावल) क्षेत्र में 77 प्रतिशत योगदान है। सन् 1968 में केवल दो धान (चावल) उत्पादक जिले ऐसे थे जिनमें 2 टन प्रति हैक्टर से ज्यादा उत्पादन होता था, लेकिन 2002 में 44 प्रतिशत धान (चावल) उत्पादक जिलों या 103 जिलों में 3 टन प्रति हैक्टर से ज्यादा धान (चावल) की उपज हो रही है। सन 1968 में शून्य की तुलना में अब 28 जिलों में 3 टन प्रति हैक्टर स अधिक धान (चावल) की उपज मिलती है। इससे साफ है कि धान (चावल) उत्पादन बढ़ाने में देश और विदेश स्तर पर हुए अनुसंधन प्रयासों से महत्वपूर्ण प्रगति हुई है। धान (चावल) हमारे देश की प्रमुख फसल है। देश में लगभग 70-80 प्रतिशत जनता का भरण-पोषण् इसी फसल के द्वारा होता है। धान (चावल) की खेती विभिन्न भौगोलिक परिस्थितियों में लगभग 4 करोड़ 49 लाख हैक्टर क्षेत्र (2001-02) में की जाती है। प्रायः सभी राज्यों में यह फसल उगाई जाती है, किंतु जहां अधिक वर्षा और सिंचाई का प्रबंध है, वहां पर इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। धान (चावल) का उत्पादन लगभग 9 करोड़ 33 लाख टन (2001-02) तक पहुंच गया है। राष्ट्रीय स्तर पर धान (चावल) की औसत पैदावार 2.08 टन/ हैक्टर (2001-02) है। अधिक पैदावार के लिए खाद और सिंचाइ का अधिक उपयोग करने और धान (चावल) की उन्नत किस्मों के प्रचलन से लगभग पिछले दो दशकों में धान (चावल) की पैदावार में व्यापक वृद्धि हुई है, फिर भी इसकी औसत पैदावार इसकी उपयोग क्षमता स काफी कम है। हमारे देश में धान (चावल) की खेती मुख्यतः तीन परिस्थितियों में की जाती है 1. वर्षा आश्रित ऊंची भूमि 2. वर्षा आश्रित निचली भूमि और 3. सिंचित भूमि। यदि धान (चावल) की फसल को वैज्ञानिक तरीके से उगाया जाये और कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रख् तो निश्चित रूप से इसकी उपज में 15 से 20 प्रतिशत तक की वृद्धि हो सकती है। इसके लिए मुख्य सस्य क्रियाओं का विवरण इस प्रकार है- भूमि का चुनाव और तैयारी धान (चावल) की खेती के लिए अच्छी उर्वरता वाली, समतल व अच्छे जलधारण क्षमता वाली मटियार चिकनी मिट्टी सर्वोतम रहती है। सिंचाई की पर्याप्त सुविधा होने पर हल्की भूमियों में भी धान (चावल) की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है। जिस खेत में धान (चावल) की रोपाई करनी हो, उसमें अप्रैल-मई में हरी खाद के लिए ढैंचे की बुवाई 20-25 कि.ग्रा. बीज प्रति हैक्टर की दर से करें। आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहें ओर जब फसल 5-6 सप्ताह की हो जाए तो उसे मिट्टी में अच्छी तरह मिला दें, तथा खेत में पानी भर दें, जिससे ढैंचा अच्छी तरह से गल-सड़ जाए। अगर हरी खाद का प्रयोग नहीं कर रहे हों तो 20-25 टन गली-सड़ी गोबर की खाद प्रति हैक्टर की दर से खेत में बिखेरकर अच्छी तरह जुताई की जाऐं। उन्नतशील किस्मों का चुनाव धान (चावल) की खेती के लिए अपने क्षेत्र विशेष के लिए उन्नत किस्मों का ही प्रयोग करना चाहिए जिसस कि अधिक से अधिक पैदावार ली जावें। धान (चावल) की प्रमुख किस्में नीचे दी जा रही हैः- अगेती किस्में (110-115 दिन): इनमें मुख्य रूप से पूसा 2-21, पूसा-33, पूसा-834, पी.एन.आर. -381, पी.एन.आर.-162, नरेन्द्र धान (चावल)-86, गोविन्द, साकेत-4 और नरेन्द्र धान (चावल)-97 आदि प्रमुख है। इनकी नर्सरी का समय 15 मई से 15 जून तक है तथा इनकी औसत पैदावार लगभग 4.5-6. टन/हैक्टेयर तक रहती है। मध्य अवधि की किस्में (120-125 दिन): किस्में इनमें मुख्य किस्में पूसा-169, पूसा-205, पूसा-44, स

Wheat(gehu) farming

Gehu ki vaigyanik kheti ki jankari – गेहूं के खेती Har Kisan bhai Gehu ki vaigyanik aur unnat kheti kar ke lakon mein kama sakte hain | जानिए गेहू के खेती की jaankari, jise bol chal mein Wheat bhi bola jata hai | अगर वैज्ञानिको द्वारा बताए गए तरीको से गेहूँ की खेती की जाये तो किसानो को बहुत फायदा हो सकता है, बस कुछ बातों का खास ख्याल रखना होगा जैसे की खेती के लिए भूमि कैसी होनी चाहिए, जलवायु कैसी होनी चाहिए, सिंचाई व बुआई कब करना चाहिए आदि । निचे हम आपको इन सभी बातों के बारे में बतायेंगे जिससे की आप गेंहूँ की खेती भली भांति कर सकेंगे । गेहू की खेती कैसे करें ? / How to do Wheat farming Aaj ke daur mein kisan bhai Gehu ki scientific tarike se kheti kar ke lakhon mein aasani se kama sakte hain. Agar sahi tarike se wheat ki kheti bhi ki jaye to aap accha profit save kar sakte hain. Iske alawa aap haldi ki bhi kheti kar k e accha khasa profit kama sakte hain. To chaliye jante hai Gehun ki kheti kaise kare: भूमि का चुनाव/तैयारी / Selection of Land गेहूं की खेती करने समय भूमि का चुनाव अच्छे से कर लेना चाहिए । गेहूँ की खेती में अच्छे फसल के उत्पादन के लिए मटियार दुमट भूमि को सबसे सर्वोतम माना जाता है। लेकिन पौधों को अगर सही मात्रा में खाद दी जाए और सही समय पर उसकी सिंचाई की जाये तो किसी भी हल्की भूमि पर गेहूँ की खेती कर के अच्छे फसल की प्राप्ति की जा सकती है । खेती से पहले मिट्टी की अच्छे से जुताई कर के उसे भुरभुरा बना लेना चाहिए। फिर उस मिट्टी पर ट्रेक्टर चला कर उसे समतल कर देना चाहिए। जलवायु गेहूँ के खेती में बोआई के वक्त कम तापमान और फसल पकते समय शुष्क और गर्म वातावरण की जरुरत होती हैं। इसलिए गेहूँ की खेती ज्यादातर अक्टूबर या नवम्बर के महिनों में की जाती हैं। बुआई गेहूँ की खेती में बिज बुआई का सही समय 15 नवम्बर से 30 नवम्बर तक होता है । अगर बुआई 25 दिसम्बर के बाद की जाये तो प्रतिदिन लगभग 30kg प्रति हेक्टेयर के दर से उपज में कमी आजाती है । बिज बुआई करते समय कतार से कतार की दूरी 20cm होनी चाहिए । बीजोपचार गेहूँ की खेती में बीज की बुआई से पहले बीज की अंकुरण क्षमता की जांच जरुर से कर लेनी चाहिए। अगर गेहूँ की बीज उपचारित नहीं है तो बुआई से पहले बिज को किसी फफूंदी नाशक दवा से उपचारित कर लेना चाहिए । खाद प्रबंधन गेहूँ की खेती में समय पर बुआई करने के लिए 120kg नत्रजन(nitrogen), 60kg स्फुर(sfur) और 40kg पोटाश(potash) देने की अवेश्यकता पड़ती है । 120kg नत्रजन के लिए हमें कम से कम 261kg यूरिया प्रति हेक्टेयर का इस्तेमाल करना चाहिए । 60kg स्फुर के लिए लगभग 375kg single super phoshphate(SSP) और 40kg पोटाश देने के लिए कम से कम 68kg म्यूरेटा पोटाश का इस्तेमाल करना चाहिए । सिंचाई प्रबंधन अच्छी फसल की प्राप्ति के लिए समय पर सिंचाई करना बहुत जरुरी होता है । फसल में गाभा के समय और दानो में दूध भरने के समय सिंचाई करनी चाहिए । ठंड के मौसम में अगर वर्षा हो जाये तो सिंचाई कम भी कर सकते है । कृषि वैज्ञानिको के मुताबिक जब तेज हवा चलने लगे तब सिंचाई को कुछ समय तक रोक देना चाहिए । कृषि वैज्ञानिको का ये भी कहना है की खेत में 12 घंटे से ज्यादा देर तक पानी जमा नहीं रहने देना चाहिए । गेहूँ की खेती में पहली सिंचाई बुआई के लगभग 25 दिन बाद करनी चाहिए । दूसरी सिंचाई लगभग 60 दिन बाद और तीसरी सिंचाई लगभग 80 दिन बाद करनी चाहिए । खरपतवार गेहूँ की खेती में खरपरवार के कारण उपज में 10 से 40 प्रतिशत कमी आ जाती है । इसलिए इसका नियंत्रण बहुत ही जरुरी होता है । बिज बुआई के 30 से 35 दिन बाद तक खरपतवार को साफ़ करते रहना चाहिए । गेहूँ की खेती में दो तरह के खरपतवार होते है पहला सकड़ी पत्ते वाला खरपतवार जो की गेहूँ के पौधे की तरह हीं दिखता है और दूसरा चौड़ी पत्ते वाला खरपतवार । खड़ी फसल की देखभाल कृषि वैज्ञानिको का कहना है की गेहूँ का गिरना यानि फसल के उत्पादन में कमी आना । इसलिए किसानो को खड़ी फसल का खास ख्याल रखना चाहिए और हमेशा सही समय पर फफूंदी नाशक दवा का इस्तेमाल करते रहना चाहिए और खरपतवार का नियंत्रण करते रहना चाहिए । फसल की कटनी और भंडारा गेहूँ का फसल लगभग 125 से 130 दिनों में पक कर तैयार हो जाता है। फसल पकने के बाद सुबह सुबह फसल की कटनी करना चाहिए फिर उसका थ्रेसिंग करना चाहिए । थ्रेसिंग के बाद उसको सुखा लें । जब बिज पर 10 से 12 percent नमी हो तभी इसका भंडारण करनी चाहिए ।

Monday 13 June 2016

Mushroom farming..

Mushroom ki Kheti Aur Business Kaise Kare (हिंदी) मशरुम का बिज़नेस (Mushroom business) एक ऐसा व्यापार है जो की कम पूंजी, कम जगह और कम समय में अच्छा return दे सकता है | Mushroom ki kheti kaise kare कोई rocket science नहीं है | आप थोड़ी सी मेहनत और लगन से mushroom ke business को उचाई तक ले जा सकते हैं | मैंने खुद मशरुम की बिज़नेस किया था परन्तु अच्छा business partner नहीं मिलने के कारण मुझे बिच में ही छोड़ना पड़ा | लेकिन मैं अपने अनुभव से बतला सकता हूँ की mushroom एक profitable business है जो कम समय में अच्छा return दे सकता है | और हाँ अगर आप ghar baithe किसी business के बारे में सोच रहे है, तो mushroom बिज़नेस आपके लिए है | चलिए mushroom ke kheti ki adhik se adhik jankri हासिल करे ise kaise karte hai और व्यापार कैसे किया जाये | तो चलिए जानते है की कैसे मशरुम व्यापार की सुरुवात किया जाये और किन किन चीजों की जरुरत होगी | Space Requirement मशरुम की खेती करने से पहले आपको यह तय करना होगा की आप कितना उत्पादन करना चाहते है और उसी की अनुसार space की जरुरत होगी | एक medium मशरुम के पैकेट से आप लगभग 1 से 4 kg तक आसानी से उत्पादन कर सकते हैं | अगर आप केवल सुरुवात कर के देखना चाहते है की मशरुम का बिज़नेस कर पाएंगे या नहीं तो उसके लिए 300 Sq feet की जगह लगेगी | और हाँ ध्यान रखे की जिस place पर आप mushroom business setup करने जा रहे है वो market से ज्यादा दूर नहीं हो | आप चाहे तो घर की पीछे भी इसे start कर सकते है, परन्तु जगह पूरा बंद होना चाहिये | Things Required इसकी खेती के लिए आपको मशरुम को उगाना पड़ेगा और इसे 3 तरह से किया जा सकता है : 1. Bed बना कर 2. लटका (hang) कर 3. जमीन से थोड़ी उचाई पर रख कर Bed बना कर अगर आप सुरुवात कर रहे है तो कोशिश करें की कम से कम investment में mushroom का business start करें | इसके लिए आप चाहे तो बांस (bamboo) से बेड-नुमा आकार के bed तैयार कर सकते है जिसके ऊपर मशरुम को रखा जा सकता है | यह तरीका काफी सस्ता और affordable भी है | लटका (hang) कर इस विधि में मशरुम के packet को लटका (hang) कर के रखा जाता है | इस तरीके से आप कम से कम place में ज्यादा से ज्यादा mushroom उगा सकते हैं | इसे समझाने के लिए मैंने यह picture यहाँ share की है ताकि आपको अच्छे से idea मालूम चल सके | जमीन से थोड़ी उचाई पर रख कर इस विधि में मशरुम के पैकेट या बीज को को बिना किसी सहारे के सीधे जमीन पर रख कर उगाया जाता है | Types of Mushroom India में मुख्यतः 2 तरह के mushroom उपयोग में लाये जाते है: 1. Oyster Mushrooms 2. Button Mushroom आप decide कर लें की आपको किस मशरूम की खेती करनी है, दोनों के अलग अलग फायदे, demand और price (दाम) हैं market में | वैसे button mushroom. Mushroom Spawn इसे mushroom ka bij (बीज) भी बोलते है | इसी बीज से मशरुम उगाया जाता है | वैसे तो आप spawn को उगा भी सकते है परन्तु अच्छा यही रहेगा की आप किसी नजदीक केंद्र से spawn खरीद लें, जब आपका mushroom ka business बढेगा तब आप spawn बनाने की सोच सकते हैं | Plastic Bags आपको प्लास्टिक बैग की भी जरुरत होगी ताकि मशरूम के पैकेट बना कर बंधा जा सके | ध्यान रहे को यह विधि केवल Oyster Mushrooms के लिए है | अगर आप बटन मशरुम की खेती करना चाहते है तो उसके लिए आपको दूसरी तरीके से खेती करनी होगी | Plastic bag साधारण bag से मोटी और मजबूत होगी | आप इसे नजदीकी market से खरीद सकते है | दुकान वाले से बोले की mushroom पैकेट बांधने के लिए मोटी प्लास्टिक दे जो की 5 से 8 kg तक का वजन सह सके | भूसा या पुआल (Straw) अब अगला काम है की आप पुआल की इंतेजाम करे | इसके लिए आप नजदीकी ग्वाले (दूध वाले ) से संपर्क कर के मालूम कर सकते है की कहाँ पर पुआल मिलेगा | सुरुवाती तौर पर आप 5 से 6 बोड़ा भूसा ले कर रख सकते है | शुरुवात के लिए इतनी मात्रा enough होगी | ध्यान रहे की पुआल ज्यादा बड़ी नहीं होने चाहिये और ना ही बिलकुल छोटी | 1/2 इंच का पुआल ठीक रहेगा | एक बड़े बाल्टी या टब में जरुरत के हिसाब से भूसा को दाल कर उसमें अच्छी मात्र में पानी दाल कर रात भर छोड़ दें | इसमें एक liquid भी मिलाना पड़ता है (आप किसी mushroom किसान से इसके बारे में पूछताछ कर सकते हैं) | रात भर छोड़ने के बाद इसे टब से निकाल कर पानी गिरने दे और धुप में 2 से 4 घंटे के लिए छोड़ दें | ध्यान रहे की पुआल ना ही बिलकुल गिला और ना ही बिलकुल सुखा होना चाहिये | अब इसे उठा कर अन्दर ले जाये जहाँ पर इसे पैकेट में बांधा जायेगा, बड़े से प्लास्टिक के ऊपर रख कर फैला दें और 2 से 3 घंटे के लिए fan on कर के छोड़ दे ताकि अतिरिक्त नमी निकाल जाये | ध्यान रहे की पुआल को साफ़ जगह पर ही रखे | अगर आपको मालूम करना है की पुआल ready हो गया है या नहीं तो सबसे अच्छा तरीका मालूम करने का यह है की पुआल को मुट्ठी में दबा कर देखे की पानी गिरता है या नहीं | अगर मुट्ठी में पुआल को जोर से दबाने से पानी नहीं गिरता है तो समझे की पुआल ready है mushroom packet बांधने के लिए | Mushroom Packet बांधे अब आप प्लास्टिक को निचे से रस्सी (plastic rope) से बांध दें (अगर निचे से प्लाटिक कटी हुई हो तो) | अब इसमें 1/2 inch तक पुआल फैला कर भरे और इसके ऊपर किनारे किनारे mushroom spawn को थोडा थोडा कर के दाल दें | 20 से 25 mushroom spawn के दाने को बिच में भी फैला कर दाल दें | अब इसके ऊपर फिर से 1/2 इंच तक पुआल डाले और फिर से mushroom spawn को किनारे दाल दें | इस प्रक्रिया को तब 6 से 8 बार दोहराये ताकि 6 से 8 layer बन सके | ध्यान रहे की पुआल को भरने समय, इसे हल्का हल्का दबाते जाये | अब ऊपर से भी थोड़ी मात्र में मशरुम स्पान दाल कर इसे अच्छे से ऊपर से बांध दें | अब इसे साफ़ छोटी चीज (लकड़ी या पिन) से प्लास्टिक में जगह जगह hole कर देइउन ताकि इसमें से मशरुम बाहर निकाल पाये | आपका mushroom pack ready है | अब इसे तैयार stand में रस्सी के सहारे टांग दे जैसे निचे दिखाया गया है Notes निचे दिए गये कुछ महत्वपूर्ण mushroom ki kheti की jankari और tips दिए गए हैं जिसे आप अपनाकर mushroom business project को काफी अच्छी तरह से आगे ले जा सकते हैं | Mushroom packet को हमेशा dark और अँधेरे जगह रखे | धुप बिलकुल नहीं आनी चाहिए | खिड़कियाँ (windows) को हमेशा भींगे हुए बोदे से ढक कर रखे ताकि room में Moisture बना रहे | Room में जाने से पहले अपने चप्पल या जूते खोल कर जाये | अपने हाथ और पैर को साबुन (liquid soap) से अच्छी तरह धो कर ही room में जायें | समय समय पर (1 से 2 दिन में) हल्की हल्की पानी से mushroom के पैकेट के ऊपर बौछार किया करे, ताकि नमी बरकरार रहे | मशरुम उगाने में लगने वाला समय देखा जाये तो mushroom ko ugane mein लगभग 1 से 2 week लगता है और यह 4 से 6 week तक उत्पादन देता है | परन्तु 3 से 4 week के बाद production धीरे धीरे कम होने लगता है | Market फिलहाल Oyster Mushrooms का market दाम (rate) लगभग Rs 100 से 120 तक है | आप आसानी से Rs 60 से 80 तक रिटेलर (retailer) को बेच (sale\) कर सकते हैं | ठीक उसी तरह Button Mushroom का market rate लगभग Rs 180 से ले कर Rs 250 तक है | इसे बेचने के लिए आप सब्जी बेचने वाले से बात कर की उनको sale कर सकते है या फिर directly customers तो market rate से थोडा कम दाम से sale कर सकते है और अच्छा मुनाफा कम सकते हैं | Mushroom को किसी अच्छे transparent plastic bag में बंद (सील) कर के भी आप अच्छा rate ले सकते हैं |

Garlic(lahsun) farming.

Lahsun ki Vaigyanik Kheti – लहसुन की खेती Yakin maniye Lahsun ki uchit kheti kar ke aap lakho mein kama sakte hain. Jahan tak kaise kare ka sawal hai, apke pass kewal acchi jankari aur Vaigyanik tarike ko apnakar start kiya jaa sakta hai. लहसुन की खेती को अगर कृषि वैज्ञानिक के बताए गए तरीके से की जाये तो किसानो को बहुत कम खर्च में अच्छा benefits हो सकता है । अगर भूमि और फसल की अच्छे से देखभाल की जाये तो किसानो को प्रति hectare 100 से 200 क्विंटल उपज मिल जाती है। वैज्ञानिको द्वारा लहसुन की खेती के लिए कैसी भूमि होनी चाहिए, खेत में कब और कितना खाद देना चाहिए, कब कब सिंचाई करनी चाहिए आदि की जानकारी हम आपको निचे बताएँगे । Lahsun ki Kheti Kaise Kare Agar aapke pass badi se jamin hai aur sahi tarike se Garlic ki kheti ki jaye to aap lakhon mein aasani se 3 months mein kama sakte hai. Iske liye aapko Vaigyanik tarike ko apnakar lahsun ki uchit kheti karni hogi aur hard work ke saath aap isse accha business kar sakte hai. खेती के लिए भूमि का चयन/ Selection of Land लहसुन की खेती के लिए दोमट भूमि जिसमे जल निकलने की प्रबंध अच्छी हो उसे सबसे उत्तम माना जाता है । लहसुन की खेती शुरु करने से पूर्व भूमि की जुताई कर के उसे भुरभुरा बना कर उसपर पाटा चला देना चाहिए इससे भुरभुरी भूमि फिर से समतल हो जाती है । खेती के लिए जलवायु लहसुन की खेती के लिए ठंडी जलवायु की जरुरत पड़ती है क्योंकि ठंड में दिन छोटा होने के कारण कंद का उत्पादन अच्छे से होता है । लहसुन की खेती समुद्र के level से 1000-1400m तक कि ऊंचाई पर की जा सकती है। लहसुन की खेती के लिए लगभग 30 से 35 डिग्री से. तक का temperature और लगभग 10 घंटे का दिन को उत्तम माना जाता है । बीजोपचार / बीज बुवाई लहसुन की खेती में बीज बुवाई से पूर्व बीजों को Kerosene से उपचारित कर लेना चाहिए। बीज बोने के लिए भूमि को 4 से 5cm गहरा खोद लेना चाहिए। फसल की अच्छी उपज हेतु लहसुन को डबलिंग विधि से बोना चाहिए । बुवाई करने वक्त कतार से कतार की दुरी लगभग 15cm और पौधों से पौधों की दूरी लगभग 8cm होनी चाहिए । खाद प्रबंधन लहसुन के अधिक उत्पादन के लिए एक एकड़ के हिसाब से लगभग 25 ton सड़ी हुई गोबर की खाद को खेत में डाल दें। इसके अलावा 50kg भू-पावर, 40 kg माइक्रो फर्टीसिटी कम्पोस्ट , 10kg माइक्रो भू-पावर, 10kg सुपर गोल्ड कैल्सीफर्ट, 50 kg अरंडी की खली और 20kg माइक्रो नीम, को अच्छी तरह एक साथ mix कर के तैयार लें और फिर खेत में समान मात्रा में बिखेर कर जुताई कर खेत तैयार करें उसके बाद बीज की बुवाई करे | . बीज बोने के लगभग 25 दिन बाद उसमे 1 kg सुपर गोल्ड मैनिशियम और 500 माइक्रो झाइम को 400ml पानी में घोल बनाकर पम्प द्वारा खेत में छिड़काव करें उसके बाद हर 15 से 20 दिन के interval में दूसरा और तीसरा छिड़काव करे । खरपतवार नियंत्रण लहसुन की खेती में खरपतवार को नष्ट करने हेतु इसकी निराई गुड़ाई जरुर से करें। पहली निराई गुड़ाई बीज बोने के लगभग 25 दिन बाद खुरपी से करें । फिर दूसरी निराई गुड़ाई लगभग 50 दिन के बाद करें। सिंचाई /जल प्रबंधन लहसुन की खेती में फसल की वृद्धि हेतु भूमि में नमी का होना जरुरी होता है इसलिए बीज बोने के तुरंत बाद पहली सिंचाई कर देनी चाहिए । उसके बाद हर 15 days के interval में खेत की सिंचाई करनी चाहिए । रोग / किट नियंत्रण लहसुन में लगने वाले रोग व किट इस प्रकार के होते है :- थ्रिप्स किट :– थ्रिप्स किट दिखने में छोटे छोटे व पीले(yellow) रंग के होते है जो की पत्तियों का रस चूस कर उसपर सफ़ेद रंग के धब्बा बना देते है । इस किट से बचाव के लिए नीम का काढ़ा बना कर माइक्रो झाइम के साथ mix कर के 250ml पानी में घोल कर पम्प से खेत में छिड़काव करें । बैंगनी धब्बा रोग :- इस रोग में पत्तो पर और तने पर छोटे छोटे गुलाबी(pink) रंग के धब्बे हो जाते है। इस रोग से बचाव के लिए नीम का काढ़ा बना कर माइक्रो झाइम के साथ mix कर के 250ml पानी में घोल कर पम्प से खेत में छिड़काव करें । स्टेमफिलियम ब्लाईट रोग :- नम weather में लगने वाला यह रोग फफूंदी के कारण होता है। इस रोग से बचाव के लिए नीम का काढ़ा बना कर माइक्रो झाइम के साथ mix कर के 250ml पानी में घोल कर पम्प से खेत में छिड़काव करें । फसल की खुदाई लहसुन का फसल 2 month में ready हो जाता है । जब लहसुन का फसल तैयार हो जाता है तो उसके पत्ते पीले हो कर नष्ट हो जाते है। फसल तैयार होने के बाद कंदों को पौध सहित खोद कर उखाड़ लेना चाहिए फिर उसका बण्डल बनाकर 3 से 4 दिन तक धुप में सुखाया जाना चाहिए

Onion (pyaj) farming

Pyaj ki Kheti Kaise Kare – प्याज की वैज्ञानिक खेती Aaj ki is daur mein kaise pyaj ki kheti kare ke log lakhon mein kama rahe hai. Janiye kya hai sahi kheti karne ke tarike, iske vaigyanik प्याज (onion) जिसे किसी भी सब्जी के साथ मिला दिया जाये तो उस सब्जी का स्वाद बढ़ जाता है। प्याज बहुत दिनों तक खराब नहीं होता है। बाज़ार में इसका भाव बहुत हीं बढ़िया मिलता है इसलिए प्याज की खेती करने से किसानो को बहुत फायदा मिल सकता है । तो आइये जानते है प्याज की खेती कैसे करने से हमें ज्यादा profit हो सकता है । प्याज की खेती कैसे करे / Payaj ki Vaigyanik Kheti Aaj ke is daur mein pyaj ki kheti ek aisa business hai jise kisan bhai uga kar lakhon mein kama sakte hain. Agar aap onion ki kehti karne ki soch rahe hai to niche diye gaye tips ko follow kar ke accha khasa kama sakte hain. Iske saath saath thodi se jagah mein aap anar phal ki kheti bhi kar sakte hain aur adhik labh kama sakte hain. To aiye jante hai kaise kare pyaj ki adhunik tarike se aur kamay dhre sare paise. जमीन/ भूमि की तैयारी प्याज की सफल खेती में 5.8 से 6.5 के बिच के पी.एच. मान वाले जीवांशयुक्त हल्की दोमट भूमि या बलूई दोमट भूमि को श्रेष्ठ माना जाता है। खेती करने से पहले भूमि की अच्छे से साफ़ सफाई कर के उसे भुरभुरा बना लेना चाहिए। जलवायु प्याज की खेती हर तरह की जलवायु में किया जा सकता है बस थोड़ी सी सावधानी से काम लिया जाये तो प्याज की अच्छी उत्पादन संभव है। इसकी खेती के लिए ना ज्यादा गर्मी ना ज्यादा ठंड का मौसम सबसे सर्वोतम होता है । इसलिए छत्तीसगढ़ को प्याज के उत्पादन के लिए अनुकुल माना जाता है । कृषि वैज्ञानिको द्वारा प्याज की खेती पर तापमान का गहरा प्रभाव पड़ता है । अच्छी वृद्धि के लिए 20 डिग्री से. से 27 डिग्री से. तक का तापमान प्याज में अच्छी बढ़त लाता है। फल पकने समय तापमान 30 डिग्री से. से 35 डिग्री से. तक मिल जाये तो और भी बेहतर होता है । प्याज की प्रजाती प्याज के 3 प्रकार प्रमुख है जो रंगों के आधार पर है :- लाल रंग के प्याज :- इस रंग के प्याज में उन्नत किस्म के प्याज की प्रजाती का नाम है जैसे उषा रेड, उषा माधवी ,पंजाब सिलेक्शन , अर्का निकेतन, ऐग्री फाउंड dark red, ऐग्री फाउंड light red आदि । पीले रंग के प्याज:- इस किस्म के नाम इस प्रकार हुआ करते है – early green, brown spanish आदि। सफ़ेद रंग के प्याज :- इसके नाम इस प्रकार के है – उषा white, उषा round, उषा flat, आदि । सिचाई / जल प्रबंधन खेती करने के दवरान जल प्रबंधन का खास ध्यान रखना चाहिए। रबी के प्याज के लिए समय समय पर 10 से 12 बार सिचाई की जरुरत होती है। गर्मी में एक सप्ताह के अंतराल में और ठंड के मौसम में 15 दिनों में सिचाई करनी चाहिए। रबी के फसल में जब पत्ते पीले होने लगे तो सिचाई 15 दिन के लिए रोक देनी चाहिए जिससे पीले पत्ते सुख जाए और फिर खुदाई करके निकाले जा सके। खाद प्रबंधन कृषि वैज्ञानिको के द्वारा प्याज की खेती के लिए 300 से 350 क्विंटल अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद प्रति हेकटेयर की दर से भूमि तैयारी के समय ही मिला देनी चाहिए। नत्रजन(nitrogen) 80 kg, फास्फोरस (phasphoras) 50 kg, और पोटाश(potash) 80 kg प्रति हेक्टेयर की आवश्कता पड़ती है। पोटाश और फास्फोरस की पूरी मात्रा और नत्रजन की आधी मात्रा खेत की अंतिम तैयारी के साथ या रोपाई से पहले भूमि में मिला देनी चाहिए। बाकि आधी बची हुई नत्रजन दो बार में पहला रोपाई के 30 दिनों के बाद और दूसरा 45 दिनों के बाद छिड़काव के साथ दे । खरपतवार की सफाई इसके फसल में खरपतवार को निकालना आवश्यक होता है अन्यथा उपज काफी प्रभावित होती है । इसको नियंत्रित करने के लिए रोपाई से पहले 2kg वासालीन प्रति हेक्टेयर की दर से भूमि में छिड़क कर मिला दे और फिर 45 दिनों के बाद एक जुताई कर के खरपतवार को नियंत्रित किया जाना चाहिए । चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए 2.5kg टेनोरान प्रति हेक्टेयर की दर से 800 लीटर पानी में मिलाकर रोपाई के 20 से 25 दिनों के बाद छिड़काव किया जाना चाहिए । किट पतंग / रोग नियंत्रण प्याज की फसल में पाए जाने वाले बैगनी धब्बा रोग सबसे प्रमुख रोग होते है। इस रोग में पत्तियों पर आरम्भ में पीले से सफ़ेद धसे हुए धब्बे लगते है जिनके बिच का भाग बैगनी रंग का होता है । यह रोग तेजी से बढ़ता है और पत्तियों से फैलकर बिच के स्तंभों में पहुँच जाता है । इस रोग के प्रभाव से प्याज का भंडारण करना मुश्किल हो जाता है क्योंकि इस दरम्यान प्याज अधिक मात्रा में गलने लगता है । इस रोग के लगते हीं इसमें कोई फफूंदनाशक दवा जैसे copper oxychloride का वैज्ञानिक विधि इस्तेमाल करके इस रोग से बचा जा सकता है। इसके अलावा कुछ किट ऐसे भी होते है जो प्याज के पत्तो के बाहरी त्वचा को खरोच कर रस चूसते है जिससे पत्तियों पर असंख्य छोटे छोटे सफ़ेद धब्बे बन जाते है । समय रहते अगर किसान इसे नियंत्रित नहीं कर पाए तो प्याज में निरुपता आ जाती है साथ हीं लगभग 25% उपज कम हो जाती है । Jab payaj ki fasal tayyar ho jaye to mandi mein yaa phir sidhe khudra bajar mein jaa kar bech dein aur accha fayde kamaye.

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Potatoes farming

Aloo ki Vaigyanik Kheti – आलू की खेती Sabji ka raja Aloo ki uchit kheti kar ke aap lakhon mein aasani se kama sakte hain. Agar aap hardworking hain aur iski scientific jankari ho to aap ise start kar sakt hain. आलू की खेती अगर कृषि वैज्ञानिक के बताए गए नई जानकारी के आधार पर की जाए तो किसानो को बहुत लाभ हो सकता है । आलू की खेती कब कहाँ और कैसे करने से अधिक फसल की प्राप्ति होती है इसकी पूरी जानकारी हम आपको निचे बताने जा रहे है । Aloo ki Kheti Kaise Vaigyanik Tarike se Kare Agar aapke pass khali aur badi jamin khali padi hui ho jis par kuch kaam naa ho raha ho to us par aap scientific tarike se aloo ki kheti kar ke lakhon mein kama sakte hain. Sabse acchi baat yah hai ki Potato ki farming mein aapko 2 se 3 months andar tak return mil jata hai. Aur saath he saath Aloo ki price and demand bhi acchi hai. आलू उत्पादन के लिए भूमि का चयन व तैयारी :- आलू की खेती के लिए रेतीली दोमट मिट्टी वाली जमीन सबसे सर्वश्रेष्ठ मानी जाति है । इसकी खेती में जल निकासी का management भी अत्यंत जरुरी होता है । चूँकि आलू का कंद मिट्टी के भीतर हीं तैयार होता है इसलिए मिट्टी का अच्छी तरह से भुरभुरा होना अत्यंत आवयशक है । मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए पहले खेत की 3 से 4 times जोताई कर के फिर उसे भुरभुरा कर लें । जलवायु आलू की खेती में तापमान (temperature) का विशेष रूप से योगदान होता है। आलू की खेती के लिए ठंडी जलवायु की अव्यश्कता होती है । फसल की अधिक पैदावार के लिए temperature का कम होना जरुरी होता है । आलू की फसल की अलग अलग अवस्थाओं में पौधों को अलग अलग temperature की अव्यश्कता होती है । आलू के पौधों को starting में बढ़ने के लिए temperature लगभग 25 डिग्री से. होना चाहिए । उसके बाद पौधों के उचित विकास के लिए लगभग 18 डिग्री से. temperature की जरुरत पड़ती है । अधिक कंद के उत्पादन के लिए कम से कम 20 डिग्री से. तक का temperature होना चाहिए । अगर temperature 30 डिग्री से. से अधिक होता है तो कंद का उत्पादन कम हो सकता है । आलू की प्रजातियाँ / Varieties of Potato कुफरी चन्द्र मुखी – ये आलू लगभग 90 days में तैयार होती है । कुफरी अलंकार – ये आलू लगभग 70 days में तैयार होती है । कुफरी शीत मान – इसे तैयार होने में लगभग 100 -120 days लग जाता है । कुफरी सिंदूरी – ये आलू लगभग 140 days में तैयार होती है । कुफरी लालिमा – यह आलू लगभग 90 days में तैयार होती है । इसके अलावा भी आलू के कई प्रजातियाँ होती है जैसे की कुफरी नवताल G 2524, कुफरी बहार 3792 E, कुफरी स्वर्ण, कुफरी जवाहर, कुफरी संतुलज, कुफरी अशोक आदि । बीज का चुनाव व बुआई का समय / Selection of Potato Seeds and Timing फसल की अच्छी पैदावार के लिए स्वच्छ बीज का उपयोग करना चाहिए । 25 gram से 100 gram तक के वजन के कंद को बीज के रूप में उपयोग किये जा सकते है । ज्यादा profit के लिए 3 cm से 3.5 cm आकार के आलूओं को हीं बीज के रूप में प्रयोग करना चाहिए । उत्तर और पश्चिम देशो में आलू की बुआई October के starting में हीं कर देना चाहिए। इसके अलावा पूर्वी भारत में October के बिच से January तक आलू की बुआई की जा सकती है । बीजोपचार व रोपन आलू की खेती करने में बीज को उपचारित(treated) कर के हीं उसकी बुआई करनी चाहिए। बीजो को उपचारित करने के लिए 5 liter मट्ठा में 15 gram हिंग पीस कर अच्छी तरह से mix कर के उसमे बीजों को उपचारित कर के उसे कुछ देर तक अच्छे से सुखा कर हीं बोना चाहिए । फसल के अच्छे उपज के लिए बीज बोने समय पंक्तियों की दूरी 50 cm की और पौधों से पौधों की दूरी लगभग 25 cm की होनी चाहिए। खाद प्रबंधन आलू की खेती करने से पहले खेत में लगभग 60 टन सड़ी हुई गोबर की खाद, 20kg नीम की खली, और 20 kg अरंडी की खली को एक साथ mix कर के भूमि में समान मात्रा में छिडकाव कर के खेत की अच्छे से जुताई कर देनी चाहिए और फिर बीज की बुआई करनी चाहिए। बीज बोने के लगभग 30 दिन के बाद 10 liter गौमूत्र में नीम का काढ़ा mix कर के उसे अच्छे से फसल के सभी तरफ छिडकाव कर दें। सिंचाई प्रबंधन आलू की खेती में पहली सिंचाई अंकुरण के उपरांत करनी चाहिए इसके बाद हर लगभग 15 दिन के interval पर हल्की सिंचाई करते रहना चाहिए। आलू की सिंचाई करने समय इस बात का ध्यान रखें की नालियाँ ¾ से अधिक ना भरनी पाए। जब आलू की खुदाई करने का समय आ जाये तो उससे 10 दिन पूर्व सिंचाई करना रोक देना चाहिए। खरपतवार आलू की खेती में मिट्टी चढ़ाने से पहले हीं खरपतवार की समस्या ज्यादा होती है। बीज बोने के बाद निराई गुड़ाई कर के जब उस पर मिट्टी चढ़ा दिया जाता है तो खरपतवार की समस्या थोड़ी कम हो जाती है। अतः खरपतवार निकलने पर time time पर उसकी निराई गुड़ाई करते रहना चाहिए । कीट व रोग नियंत्रण चैपा कीट – यह कीट dark green या dark black color के होते है। यह कीट शाखाओं से रस चूस लेती है जिसके वजह से इसके पत्ते निचे की तरफ मुड़ जाते है। इससे बचाव के लिए 5 liter मट्ठा में 5 kg नीम की पत्ती को mix कर के उसे लगभग 40 दिनों के लिए सड़ने के लिए छोड़ दें। जब ये मिश्रण पूरी तरह से सड़ जाये तो उसे 200 liter पानी के साथ mix कर के उसका छिड़काव करे । कुतरा कीट – यह किट आलू के वनस्पति, शाखाओं और इसके निकलते हुए कंदों को प्रभावित करती है। इससे बचने के लिए लगभग 10 liter गौमूत्र में 2 kg अकौआ की पत्ती mix कर के उसे कुछ दिनों तक सड़ा दीजिये और फिर इस मिश्रण को उबाल कर आधा कर लीजिए। अब इसे पानी में mix कर के इसका छिडकाव पम्प से कीजिये । अगेती अंगमारी रोग – यह रोग पत्तियों के निचे से start हो कर ऊपर की तरफ बढ़ता है । इस रोग में पत्तीयों पर छोटे छोटे गोल आकार के धब्बे पर जाते है । इस रोग से बचने के लिए भी लगभग 10 liter गौमूत्र में 2 kg अकौआ की पत्ती mix कर के उसे कुछ दिनों तक सड़ा दीजिये और फिर इस मिश्रण को उबाल कर आधा कर लीजिए। अब इसे पानी में mix कर के इसका छिडकाव पम्प से कीजिये । काली रुसी रोग – यह रोग एक प्रकार के फफूंदी के वजह से लगता है । इस फफूंदी का आक्रमण बीज बुआई के बाद हीं शुरु होता जाता है । इससे बचने के लिए लगभग 10 liter गौमूत्र में 2 kg अकौआ की पत्ती mix कर के उसे कुछ दिनों तक सड़ा दीजिये और फिर इस मिश्रण को उबाल कर आधा कर लीजिए। अब इसे पानी में mix कर के इसका छिडकाव पम्प से कीजिये । आलू की खुदाई जब आप खेत की खुदाई कर रहें हो तो सभी कटे और सड़े हुए कंदों को छांट कर अलग कर दें । आलू को बोरो मर भरने समय इस बात कर ध्यान रहे की आलू के ऊपर से उसके छिलके नहीं उतरने चाहिए । आलू का भंडारण आलू बहुत जल्द सड़ने लगता है इसलिए इसका भंडारण अच्छे से करना बहुत हीं जरुरी होता है । जिस जगह का तापमान कम होता है उस जगह आलू का भंडारण करना ज्यादा मुश्किल नहीं होता है। आलू के भंडारण के लिए temperature लगभग 2.5 डिग्री से. से ज्यादा नही होनी चाहिए ।

Potatoes farming

Aloo ki Vaigyanik Kheti – आलू की खेती Sabji ka raja Aloo ki uchit kheti kar ke aap lakhon mein aasani se kama sakte hain. Agar aap hardworking hain aur iski scientific jankari ho to aap ise start kar sakt hain. आलू की खेती अगर कृषि वैज्ञानिक के बताए गए नई जानकारी के आधार पर की जाए तो किसानो को बहुत लाभ हो सकता है । आलू की खेती कब कहाँ और कैसे करने से अधिक फसल की प्राप्ति होती है इसकी पूरी जानकारी हम आपको निचे बताने जा रहे है । Aloo ki Kheti Kaise Vaigyanik Tarike se Kare Agar aapke pass khali aur badi jamin khali padi hui ho jis par kuch kaam naa ho raha ho to us par aap scientific tarike se aloo ki kheti kar ke lakhon mein kama sakte hain. Sabse acchi baat yah hai ki Potato ki farming mein aapko 2 se 3 months andar tak return mil jata hai. Aur saath he saath Aloo ki price and demand bhi acchi hai. आलू उत्पादन के लिए भूमि का चयन व तैयारी :- आलू की खेती के लिए रेतीली दोमट मिट्टी वाली जमीन सबसे सर्वश्रेष्ठ मानी जाति है । इसकी खेती में जल निकासी का management भी अत्यंत जरुरी होता है । चूँकि आलू का कंद मिट्टी के भीतर हीं तैयार होता है इसलिए मिट्टी का अच्छी तरह से भुरभुरा होना अत्यंत आवयशक है । मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए पहले खेत की 3 से 4 times जोताई कर के फिर उसे भुरभुरा कर लें । जलवायु आलू की खेती में तापमान (temperature) का विशेष रूप से योगदान होता है। आलू की खेती के लिए ठंडी जलवायु की अव्यश्कता होती है । फसल की अधिक पैदावार के लिए temperature का कम होना जरुरी होता है । आलू की फसल की अलग अलग अवस्थाओं में पौधों को अलग अलग temperature की अव्यश्कता होती है । आलू के पौधों को starting में बढ़ने के लिए temperature लगभग 25 डिग्री से. होना चाहिए । उसके बाद पौधों के उचित विकास के लिए लगभग 18 डिग्री से. temperature की जरुरत पड़ती है । अधिक कंद के उत्पादन के लिए कम से कम 20 डिग्री से. तक का temperature होना चाहिए । अगर temperature 30 डिग्री से. से अधिक होता है तो कंद का उत्पादन कम हो सकता है । आलू की प्रजातियाँ / Varieties of Potato कुफरी चन्द्र मुखी – ये आलू लगभग 90 days में तैयार होती है । कुफरी अलंकार – ये आलू लगभग 70 days में तैयार होती है । कुफरी शीत मान – इसे तैयार होने में लगभग 100 -120 days लग जाता है । कुफरी सिंदूरी – ये आलू लगभग 140 days में तैयार होती है । कुफरी लालिमा – यह आलू लगभग 90 days में तैयार होती है । इसके अलावा भी आलू के कई प्रजातियाँ होती है जैसे की कुफरी नवताल G 2524, कुफरी बहार 3792 E, कुफरी स्वर्ण, कुफरी जवाहर, कुफरी संतुलज, कुफरी अशोक आदि । बीज का चुनाव व बुआई का समय / Selection of Potato Seeds and Timing फसल की अच्छी पैदावार के लिए स्वच्छ बीज का उपयोग करना चाहिए । 25 gram से 100 gram तक के वजन के कंद को बीज के रूप में उपयोग किये जा सकते है । ज्यादा profit के लिए 3 cm से 3.5 cm आकार के आलूओं को हीं बीज के रूप में प्रयोग करना चाहिए । उत्तर और पश्चिम देशो में आलू की बुआई October के starting में हीं कर देना चाहिए। इसके अलावा पूर्वी भारत में October के बिच से January तक आलू की बुआई की जा सकती है । बीजोपचार व रोपन आलू की खेती करने में बीज को उपचारित(treated) कर के हीं उसकी बुआई करनी चाहिए। बीजो को उपचारित करने के लिए 5 liter मट्ठा में 15 gram हिंग पीस कर अच्छी तरह से mix कर के उसमे बीजों को उपचारित कर के उसे कुछ देर तक अच्छे से सुखा कर हीं बोना चाहिए । फसल के अच्छे उपज के लिए बीज बोने समय पंक्तियों की दूरी 50 cm की और पौधों से पौधों की दूरी लगभग 25 cm की होनी चाहिए। खाद प्रबंधन आलू की खेती करने से पहले खेत में लगभग 60 टन सड़ी हुई गोबर की खाद, 20kg नीम की खली, और 20 kg अरंडी की खली को एक साथ mix कर के भूमि में समान मात्रा में छिडकाव कर के खेत की अच्छे से जुताई कर देनी चाहिए और फिर बीज की बुआई करनी चाहिए। बीज बोने के लगभग 30 दिन के बाद 10 liter गौमूत्र में नीम का काढ़ा mix कर के उसे अच्छे से फसल के सभी तरफ छिडकाव कर दें। सिंचाई प्रबंधन आलू की खेती में पहली सिंचाई अंकुरण के उपरांत करनी चाहिए इसके बाद हर लगभग 15 दिन के interval पर हल्की सिंचाई करते रहना चाहिए। आलू की सिंचाई करने समय इस बात का ध्यान रखें की नालियाँ ¾ से अधिक ना भरनी पाए। जब आलू की खुदाई करने का समय आ जाये तो उससे 10 दिन पूर्व सिंचाई करना रोक देना चाहिए। खरपतवार आलू की खेती में मिट्टी चढ़ाने से पहले हीं खरपतवार की समस्या ज्यादा होती है। बीज बोने के बाद निराई गुड़ाई कर के जब उस पर मिट्टी चढ़ा दिया जाता है तो खरपतवार की समस्या थोड़ी कम हो जाती है। अतः खरपतवार निकलने पर time time पर उसकी निराई गुड़ाई करते रहना चाहिए । कीट व रोग नियंत्रण चैपा कीट – यह कीट dark green या dark black color के होते है। यह कीट शाखाओं से रस चूस लेती है जिसके वजह से इसके पत्ते निचे की तरफ मुड़ जाते है। इससे बचाव के लिए 5 liter मट्ठा में 5 kg नीम की पत्ती को mix कर के उसे लगभग 40 दिनों के लिए सड़ने के लिए छोड़ दें। जब ये मिश्रण पूरी तरह से सड़ जाये तो उसे 200 liter पानी के साथ mix कर के उसका छिड़काव करे । कुतरा कीट – यह किट आलू के वनस्पति, शाखाओं और इसके निकलते हुए कंदों को प्रभावित करती है। इससे बचने के लिए लगभग 10 liter गौमूत्र में 2 kg अकौआ की पत्ती mix कर के उसे कुछ दिनों तक सड़ा दीजिये और फिर इस मिश्रण को उबाल कर आधा कर लीजिए। अब इसे पानी में mix कर के इसका छिडकाव पम्प से कीजिये । अगेती अंगमारी रोग – यह रोग पत्तियों के निचे से start हो कर ऊपर की तरफ बढ़ता है । इस रोग में पत्तीयों पर छोटे छोटे गोल आकार के धब्बे पर जाते है । इस रोग से बचने के लिए भी लगभग 10 liter गौमूत्र में 2 kg अकौआ की पत्ती mix कर के उसे कुछ दिनों तक सड़ा दीजिये और फिर इस मिश्रण को उबाल कर आधा कर लीजिए। अब इसे पानी में mix कर के इसका छिडकाव पम्प से कीजिये । काली रुसी रोग – यह रोग एक प्रकार के फफूंदी के वजह से लगता है । इस फफूंदी का आक्रमण बीज बुआई के बाद हीं शुरु होता जाता है । इससे बचने के लिए लगभग 10 liter गौमूत्र में 2 kg अकौआ की पत्ती mix कर के उसे कुछ दिनों तक सड़ा दीजिये और फिर इस मिश्रण को उबाल कर आधा कर लीजिए। अब इसे पानी में mix कर के इसका छिडकाव पम्प से कीजिये । आलू की खुदाई जब आप खेत की खुदाई कर रहें हो तो सभी कटे और सड़े हुए कंदों को छांट कर अलग कर दें । आलू को बोरो मर भरने समय इस बात कर ध्यान रहे की आलू के ऊपर से उसके छिलके नहीं उतरने चाहिए । आलू का भंडारण आलू बहुत जल्द सड़ने लगता है इसलिए इसका भंडारण अच्छे से करना बहुत हीं जरुरी होता है । जिस जगह का तापमान कम होता है उस जगह आलू का भंडारण करना ज्यादा मुश्किल नहीं होता है। आलू के भंडारण के लिए temperature लगभग 2.5 डिग्री से. से ज्यादा नही होनी चाहिए ।

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Aloo ki Vaigyanik Kheti – आलू की खेती Sabji ka raja Aloo ki uchit kheti kar ke aap lakhon mein aasani se kama sakte hain. Agar aap hardworking hain aur iski scientific jankari ho to aap ise start kar sakt hain. आलू की खेती अगर कृषि वैज्ञानिक के बताए गए नई जानकारी के आधार पर की जाए तो किसानो को बहुत लाभ हो सकता है । आलू की खेती कब कहाँ और कैसे करने से अधिक फसल की प्राप्ति होती है इसकी पूरी जानकारी हम आपको निचे बताने जा रहे है । Aloo ki Kheti Kaise Vaigyanik Tarike se Kare Agar aapke pass khali aur badi jamin khali padi hui ho jis par kuch kaam naa ho raha ho to us par aap scientific tarike se aloo ki kheti kar ke lakhon mein kama sakte hain. Sabse acchi baat yah hai ki Potato ki farming mein aapko 2 se 3 months andar tak return mil jata hai. Aur saath he saath Aloo ki price and demand bhi acchi hai. आलू उत्पादन के लिए भूमि का चयन व तैयारी :- आलू की खेती के लिए रेतीली दोमट मिट्टी वाली जमीन सबसे सर्वश्रेष्ठ मानी जाति है । इसकी खेती में जल निकासी का management भी अत्यंत जरुरी होता है । चूँकि आलू का कंद मिट्टी के भीतर हीं तैयार होता है इसलिए मिट्टी का अच्छी तरह से भुरभुरा होना अत्यंत आवयशक है । मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए पहले खेत की 3 से 4 times जोताई कर के फिर उसे भुरभुरा कर लें । जलवायु आलू की खेती में तापमान (temperature) का विशेष रूप से योगदान होता है। आलू की खेती के लिए ठंडी जलवायु की अव्यश्कता होती है । फसल की अधिक पैदावार के लिए temperature का कम होना जरुरी होता है । आलू की फसल की अलग अलग अवस्थाओं में पौधों को अलग अलग temperature की अव्यश्कता होती है । आलू के पौधों को starting में बढ़ने के लिए temperature लगभग 25 डिग्री से. होना चाहिए । उसके बाद पौधों के उचित विकास के लिए लगभग 18 डिग्री से. temperature की जरुरत पड़ती है । अधिक कंद के उत्पादन के लिए कम से कम 20 डिग्री से. तक का temperature होना चाहिए । अगर temperature 30 डिग्री से. से अधिक होता है तो कंद का उत्पादन कम हो सकता है । आलू की प्रजातियाँ / Varieties of Potato कुफरी चन्द्र मुखी – ये आलू लगभग 90 days में तैयार होती है । कुफरी अलंकार – ये आलू लगभग 70 days में तैयार होती है । कुफरी शीत मान – इसे तैयार होने में लगभग 100 -120 days लग जाता है । कुफरी सिंदूरी – ये आलू लगभग 140 days में तैयार होती है । कुफरी लालिमा – यह आलू लगभग 90 days में तैयार होती है । इसके अलावा भी आलू के कई प्रजातियाँ होती है जैसे की कुफरी नवताल G 2524, कुफरी बहार 3792 E, कुफरी स्वर्ण, कुफरी जवाहर, कुफरी संतुलज, कुफरी अशोक आदि । बीज का चुनाव व बुआई का समय / Selection of Potato Seeds and Timing फसल की अच्छी पैदावार के लिए स्वच्छ बीज का उपयोग करना चाहिए । 25 gram से 100 gram तक के वजन के कंद को बीज के रूप में उपयोग किये जा सकते है । ज्यादा profit के लिए 3 cm से 3.5 cm आकार के आलूओं को हीं बीज के रूप में प्रयोग करना चाहिए । उत्तर और पश्चिम देशो में आलू की बुआई October के starting में हीं कर देना चाहिए। इसके अलावा पूर्वी भारत में October के बिच से January तक आलू की बुआई की जा सकती है । बीजोपचार व रोपन आलू की खेती करने में बीज को उपचारित(treated) कर के हीं उसकी बुआई करनी चाहिए। बीजो को उपचारित करने के लिए 5 liter मट्ठा में 15 gram हिंग पीस कर अच्छी तरह से mix कर के उसमे बीजों को उपचारित कर के उसे कुछ देर तक अच्छे से सुखा कर हीं बोना चाहिए । फसल के अच्छे उपज के लिए बीज बोने समय पंक्तियों की दूरी 50 cm की और पौधों से पौधों की दूरी लगभग 25 cm की होनी चाहिए। खाद प्रबंधन आलू की खेती करने से पहले खेत में लगभग 60 टन सड़ी हुई गोबर की खाद, 20kg नीम की खली, और 20 kg अरंडी की खली को एक साथ mix कर के भूमि में समान मात्रा में छिडकाव कर के खेत की अच्छे से जुताई कर देनी चाहिए और फिर बीज की बुआई करनी चाहिए। बीज बोने के लगभग 30 दिन के बाद 10 liter गौमूत्र में नीम का काढ़ा mix कर के उसे अच्छे से फसल के सभी तरफ छिडकाव कर दें। सिंचाई प्रबंधन आलू की खेती में पहली सिंचाई अंकुरण के उपरांत करनी चाहिए इसके बाद हर लगभग 15 दिन के interval पर हल्की सिंचाई करते रहना चाहिए। आलू की सिंचाई करने समय इस बात का ध्यान रखें की नालियाँ ¾ से अधिक ना भरनी पाए। जब आलू की खुदाई करने का समय आ जाये तो उससे 10 दिन पूर्व सिंचाई करना रोक देना चाहिए। खरपतवार आलू की खेती में मिट्टी चढ़ाने से पहले हीं खरपतवार की समस्या ज्यादा होती है। बीज बोने के बाद निराई गुड़ाई कर के जब उस पर मिट्टी चढ़ा दिया जाता है तो खरपतवार की समस्या थोड़ी कम हो जाती है। अतः खरपतवार निकलने पर time time पर उसकी निराई गुड़ाई करते रहना चाहिए । कीट व रोग नियंत्रण चैपा कीट – यह कीट dark green या dark black color के होते है। यह कीट शाखाओं से रस चूस लेती है जिसके वजह से इसके पत्ते निचे की तरफ मुड़ जाते है। इससे बचाव के लिए 5 liter मट्ठा में 5 kg नीम की पत्ती को mix कर के उसे लगभग 40 दिनों के लिए सड़ने के लिए छोड़ दें। जब ये मिश्रण पूरी तरह से सड़ जाये तो उसे 200 liter पानी के साथ mix कर के उसका छिड़काव करे । कुतरा कीट – यह किट आलू के वनस्पति, शाखाओं और इसके निकलते हुए कंदों को प्रभावित करती है। इससे बचने के लिए लगभग 10 liter गौमूत्र में 2 kg अकौआ की पत्ती mix कर के उसे कुछ दिनों तक सड़ा दीजिये और फिर इस मिश्रण को उबाल कर आधा कर लीजिए। अब इसे पानी में mix कर के इसका छिडकाव पम्प से कीजिये । अगेती अंगमारी रोग – यह रोग पत्तियों के निचे से start हो कर ऊपर की तरफ बढ़ता है । इस रोग में पत्तीयों पर छोटे छोटे गोल आकार के धब्बे पर जाते है । इस रोग से बचने के लिए भी लगभग 10 liter गौमूत्र में 2 kg अकौआ की पत्ती mix कर के उसे कुछ दिनों तक सड़ा दीजिये और फिर इस मिश्रण को उबाल कर आधा कर लीजिए। अब इसे पानी में mix कर के इसका छिडकाव पम्प से कीजिये । काली रुसी रोग – यह रोग एक प्रकार के फफूंदी के वजह से लगता है । इस फफूंदी का आक्रमण बीज बुआई के बाद हीं शुरु होता जाता है । इससे बचने के लिए लगभग 10 liter गौमूत्र में 2 kg अकौआ की पत्ती mix कर के उसे कुछ दिनों तक सड़ा दीजिये और फिर इस मिश्रण को उबाल कर आधा कर लीजिए। अब इसे पानी में mix कर के इसका छिडकाव पम्प से कीजिये । आलू की खुदाई जब आप खेत की खुदाई कर रहें हो तो सभी कटे और सड़े हुए कंदों को छांट कर अलग कर दें । आलू को बोरो मर भरने समय इस बात कर ध्यान रहे की आलू के ऊपर से उसके छिलके नहीं उतरने चाहिए । आलू का भंडारण आलू बहुत जल्द सड़ने लगता है इसलिए इसका भंडारण अच्छे से करना बहुत हीं जरुरी होता है । जिस जगह का तापमान कम होता है उस जगह आलू का भंडारण करना ज्यादा मुश्किल नहीं होता है। आलू के भंडारण के लिए temperature लगभग 2.5 डिग्री से. से ज्यादा नही होनी चाहिए ।

Saturday 11 June 2016

पहले आपको यह मालूम करना होगा की आप कितना टमाटर उगाना चाहते हैं और आपके पास कितनी भूमि उपलब्ध है | उसी के अनुसार आपको खाद, दवाई, मेहनत और समय देना होगा | वैसे तो टमाटर के business में काफी कम मेहनत लगता है परन्तु इसमें आपको अपना कीमती समय दे कर बिच बिच में निरक्षण करना होगा ताकि अच्छी पैदावार हो और आमदनी भी अच्छी हो | To chaliye dekhte hai tamatar ke business karne ke liye kin kin jankari aur chijoka hona jaruri hai:टमाटर में होने वाली बीमारियाँअर्धपतन– वैसे हर business और खेती में कुछ न कुछ रूकावटे होती है, जैसे टमाटर के खेतो में बीमारी होना जिसे अर्धपतन(aardhpatan) जो की खास कर ठंड के मौसम में होती है | इस बीमारी के होने पर मिटटी और टमाटर में फफूंद (fungus) लगजाते है और टमाटर पूरा ख़राब हो जाता है | इसके अलावे कई तरह के अन्य बिमारियों से बचाया जा सकता है | इसके साथ यह जल्द फैलने वालीबीमारी होती है जिसे रोकने के लिए उचित इंतजाम करना जरुरी है |Is bimari ko rokne kel iye Formaldehyde ka upgyog hota hai taki tamatar mein honi wali bimariyon ko roka jaa sakte | 50 लीटर पानी में 1 लीटर formaldehyde को ले कर मिला लें और इसे टमाटर लगाने के पहेले अपने खेतों में जरुरत के अनुसार इसका छिडकाव कर लें | इस तरह से छिड़काव करे की ताकि खेतो में 7 से 10centimeter तक गहरे तक यह भींग जाये | और इसे plastice चादर से ढक कर 2 से 3 दिनों के लिए छोड़ दें | और उसके बात मिटटी को उलट पलट कर के अगले दो दिनों तक छोड़ दे और फिर tamatar ke paudhe लगाना सुरु करें | ऐसा करने सेठंड के मौसम में होने वाली फफूंद से बचा जा सकता है | अधिक jankari के लिए आप नजदीकी कृषि विभाग में जा कर मिले |इसके अलावा एक और तरह की बीमारी होती है जिसमे टमाटर के पौधे अचानकसे मुरझाने लगते है और सुख जाते हैं | अगर इस तरह का लक्षण (lakshan) दिखता है तो आप बेवास्तिन का इस्तेमाल करे | इसके लिए 2 ग्राम बेवास्तीन को 1 लीटर पानी में मिला कर सीधे टमाटर के जड़ के पास पानी डाले और थोडा ऊपर से छिडकाव करे | ऐसा करने से इस बीमारी से बचा जा सकता है |Leaf Curl / पत्ते मरोड़ जाना– जैसा की बीमारी के नाम से ही जाना जा सकता है, इस बीमारी के होने पर tamatar ke patte मुड़ने लगते है और थोडा झुक जाते हैं | अगर ऐसा हो रहा हैतो समाज जायें की टमाटर के पौधे में Leaf Curl नामक बीमारी हो गयी है | ऐसा होने पर फौरन इस तरह के पौधे को निकाल कर, खेत से दूर, मिटटी की अन्दर दफ़न कर दें ताकि यह बीमारी दुसरे पौधे में ना फैले | अब Imidacloprid (17.8 % SL) दवा को लेकर (6 gram मात्रा) 1 लीटर पानी में मिला दें और पुरे खेतों में छिडकाव करें |किट पतंग से बचाव– टमाटर जब बढ़ने लगते है और उसमें टमाटर आने लगे तो किट पतंग और कीड़े टमाटर के तरफ आकर्षित होने लगते है और टमाटर को नुकसान पहुचाते है | इसके रोकथाम के लिए आप शुरू में ही हर 15 टमाटर के पौधे के बाद 1 गेंदा के पौधे को लगाये | जैसा कीआप जानते है, गेंदा के फूल से कई तरह की दवा बनती है और यह कीड़े कोआस पास आने से रोकता भी है | इसके अलावा खेत की boundry केपास भी हर 10 फिट पर एक गेंदा का पौदा लगा दें |टमाटर के बीजजब आप टमाटर के खेती करने जा रहे हो तो कोशिश करे की आप Tomato Pusa 120 का ही बीज (seeds) लें ताकि आपको ज्यादा से ज्यादा टमाटर की प्राप्ति हो | यह बीज market में आसानी से उपलब्ध है |150 से 175 ग्राम (gram) hybrid टमाटर के बीज 1हेक्टेयर (hectare) खेत के लिए काफी है | इससेो काफी अच्छी मात्र में टमाटर मिल सकते हैं |टमाटर के खेती के लिए खेत तैयार करेअब आप दो तरह से खेत तैयार कर सकते है, जो की निम्नलिखित हैं :*.सीधे जमें पर (flat / समतल)*.उठी हुई बेड / क्यारी बना कर – इसके मिटटी को 10 से 15 इंच तक उचा उठा कर बनाया जाता हैकोशिश करे की टमाटर को क्यारी / मेड / उचा बना कर ही लगवाए ताकि आपको नुक्सान कम हो और लाभ जायदा | इससे होने वाले टमाटर भी निचे जमीन पर नहीं टिकेंगे और पानी से सड़ने का भी डर नहीं रहेगा | ध्यानरहे की इस पर ज्यादा पानी नहीं डाले | इसमें खर पतवार भी कम उगते है और आपकी समय की भी बचत होगी |टमाटर खेती के लिए खाद तैयार करेअगर आप चाहते है की आपको टमाटर का अच्छा rate market में मिले तो कोशिश करे की जैविक खेती (organic farming) ही करे | इसके लिए आपको केवल अच्छे खाद की जरुरत पड़ेगी जो की आप आसानी से बना सकते हैं | खाद बनाए की विधि निचे दि गयी है :*.1 हेक्टेयर (hectare) में खेती करने के लिए आप35 kg गाय के गोबर (cow dung) को लें |*.अब इसे छायादार जगह में रख कर इसमें Trichoderma या Pseudomonasनामक formulationको अच्छे से मिला दें |*.अब इसे बोर से दाख़ दें |*.इसे हर 2 दिनों में ऊपर निचे पलटा करें*.इसे total 7 दिनों तक ही रखे और आपका आर्गेनिक खादतैयार है |इस organic khad को tamatar ke nurseryके लगाने के 2 दिन पहले मिला दें ताकि टमाटर को जरुरी चीजो की आपूर्ति हो सके और अच्छे से बढ़ सके |खेती शुरू करे अब आप टमाटर के nursery को लगा कर उसकी अच्छे से देखभाल करें|*.बिच बिच में निरक्षण कर के खर पतवार को निकाला दिया करें |*.पौधे की हर 3 दिनों में निरक्षण करें, किसी भी बीमारी को लक्षण दिखने पर उसकी तुरंत उपचार की सुरुवात कर दें|*.हो सके तो टमाटर के लतावों को ऊपर की और टांग दे ताकि अच्छे टमाटर ख़राब ना हो |*.समयानुसार सिचाई करते रहे ताकि टमाटर का पौधा सुख न जाये, ध्यान रखे की ज्यादा भी पानी ना दें |*.बिच बिच में मिट्टी को जड़ के आस पास उलट पुलट किया करे ताकि उसमें oxygen की मात्रा अच्छे से पहुच सकेऔर ज्यादा फल दें |यह कम समय में अच्छा मुनाफा देने वाला व्यापर है जो की dairy farming businessके साथ आसानी से किया जा सकता है और profit में बढ़ोतरी करने में मददगार साबित हो सकती है |Related posts:

पहले आपको यह मालूम करना होगा की आप कितना टमाटर उगाना चाहते हैं और आपके पास कितनी भूमि उपलब्ध है | उसी के अनुसार आपको खाद, दवाई, मेहनत और समय देना होगा | वैसे तो टमाटर के business में काफी कम मेहनत लगता है परन्तु इसमें आपको अपना कीमती समय दे कर बिच बिच में निरक्षण करना होगा ताकि अच्छी पैदावार हो और आमदनी भी अच्छी हो | To chaliye dekhte hai tamatar ke business karne ke liye kin kin jankari aur chijoka hona jaruri hai:टमाटर में होने वाली बीमारियाँअर्धपतन– वैसे हर business और खेती में कुछ न कुछ रूकावटे होती है, जैसे टमाटर के खेतो में बीमारी होना जिसे अर्धपतन(aardhpatan) जो की खास कर ठंड के मौसम में होती है | इस बीमारी के होने पर मिटटी और टमाटर में फफूंद (fungus) लगजाते है और टमाटर पूरा ख़राब हो जाता है | इसके अलावे कई तरह के अन्य बिमारियों से बचाया जा सकता है | इसके साथ यह जल्द फैलने वालीबीमारी होती है जिसे रोकने के लिए उचित इंतजाम करना जरुरी है |Is bimari ko rokne kel iye Formaldehyde ka upgyog hota hai taki tamatar mein honi wali bimariyon ko roka jaa sakte | 50 लीटर पानी में 1 लीटर formaldehyde को ले कर मिला लें और इसे टमाटर लगाने के पहेले अपने खेतों में जरुरत के अनुसार इसका छिडकाव कर लें | इस तरह से छिड़काव करे की ताकि खेतो में 7 से 10centimeter तक गहरे तक यह भींग जाये | और इसे plastice चादर से ढक कर 2 से 3 दिनों के लिए छोड़ दें | और उसके बात मिटटी को उलट पलट कर के अगले दो दिनों तक छोड़ दे और फिर tamatar ke paudhe लगाना सुरु करें | ऐसा करने सेठंड के मौसम में होने वाली फफूंद से बचा जा सकता है | अधिक jankari के लिए आप नजदीकी कृषि विभाग में जा कर मिले |इसके अलावा एक और तरह की बीमारी होती है जिसमे टमाटर के पौधे अचानकसे मुरझाने लगते है और सुख जाते हैं | अगर इस तरह का लक्षण (lakshan) दिखता है तो आप बेवास्तिन का इस्तेमाल करे | इसके लिए 2 ग्राम बेवास्तीन को 1 लीटर पानी में मिला कर सीधे टमाटर के जड़ के पास पानी डाले और थोडा ऊपर से छिडकाव करे | ऐसा करने से इस बीमारी से बचा जा सकता है |Leaf Curl / पत्ते मरोड़ जाना– जैसा की बीमारी के नाम से ही जाना जा सकता है, इस बीमारी के होने पर tamatar ke patte मुड़ने लगते है और थोडा झुक जाते हैं | अगर ऐसा हो रहा हैतो समाज जायें की टमाटर के पौधे में Leaf Curl नामक बीमारी हो गयी है | ऐसा होने पर फौरन इस तरह के पौधे को निकाल कर, खेत से दूर, मिटटी की अन्दर दफ़न कर दें ताकि यह बीमारी दुसरे पौधे में ना फैले | अब Imidacloprid (17.8 % SL) दवा को लेकर (6 gram मात्रा) 1 लीटर पानी में मिला दें और पुरे खेतों में छिडकाव करें |किट पतंग से बचाव– टमाटर जब बढ़ने लगते है और उसमें टमाटर आने लगे तो किट पतंग और कीड़े टमाटर के तरफ आकर्षित होने लगते है और टमाटर को नुकसान पहुचाते है | इसके रोकथाम के लिए आप शुरू में ही हर 15 टमाटर के पौधे के बाद 1 गेंदा के पौधे को लगाये | जैसा कीआप जानते है, गेंदा के फूल से कई तरह की दवा बनती है और यह कीड़े कोआस पास आने से रोकता भी है | इसके अलावा खेत की boundry केपास भी हर 10 फिट पर एक गेंदा का पौदा लगा दें |टमाटर के बीजजब आप टमाटर के खेती करने जा रहे हो तो कोशिश करे की आप Tomato Pusa 120 का ही बीज (seeds) लें ताकि आपको ज्यादा से ज्यादा टमाटर की प्राप्ति हो | यह बीज market में आसानी से उपलब्ध है |150 से 175 ग्राम (gram) hybrid टमाटर के बीज 1हेक्टेयर (hectare) खेत के लिए काफी है | इससेो काफी अच्छी मात्र में टमाटर मिल सकते हैं |टमाटर के खेती के लिए खेत तैयार करेअब आप दो तरह से खेत तैयार कर सकते है, जो की निम्नलिखित हैं :*.सीधे जमें पर (flat / समतल)*.उठी हुई बेड / क्यारी बना कर – इसके मिटटी को 10 से 15 इंच तक उचा उठा कर बनाया जाता हैकोशिश करे की टमाटर को क्यारी / मेड / उचा बना कर ही लगवाए ताकि आपको नुक्सान कम हो और लाभ जायदा | इससे होने वाले टमाटर भी निचे जमीन पर नहीं टिकेंगे और पानी से सड़ने का भी डर नहीं रहेगा | ध्यानरहे की इस पर ज्यादा पानी नहीं डाले | इसमें खर पतवार भी कम उगते है और आपकी समय की भी बचत होगी |टमाटर खेती के लिए खाद तैयार करेअगर आप चाहते है की आपको टमाटर का अच्छा rate market में मिले तो कोशिश करे की जैविक खेती (organic farming) ही करे | इसके लिए आपको केवल अच्छे खाद की जरुरत पड़ेगी जो की आप आसानी से बना सकते हैं | खाद बनाए की विधि निचे दि गयी है :*.1 हेक्टेयर (hectare) में खेती करने के लिए आप35 kg गाय के गोबर (cow dung) को लें |*.अब इसे छायादार जगह में रख कर इसमें Trichoderma या Pseudomonasनामक formulationको अच्छे से मिला दें |*.अब इसे बोर से दाख़ दें |*.इसे हर 2 दिनों में ऊपर निचे पलटा करें*.इसे total 7 दिनों तक ही रखे और आपका आर्गेनिक खादतैयार है |इस organic khad को tamatar ke nurseryके लगाने के 2 दिन पहले मिला दें ताकि टमाटर को जरुरी चीजो की आपूर्ति हो सके और अच्छे से बढ़ सके |खेती शुरू करे अब आप टमाटर के nursery को लगा कर उसकी अच्छे से देखभाल करें|*.बिच बिच में निरक्षण कर के खर पतवार को निकाला दिया करें |*.पौधे की हर 3 दिनों में निरक्षण करें, किसी भी बीमारी को लक्षण दिखने पर उसकी तुरंत उपचार की सुरुवात कर दें|*.हो सके तो टमाटर के लतावों को ऊपर की और टांग दे ताकि अच्छे टमाटर ख़राब ना हो |*.समयानुसार सिचाई करते रहे ताकि टमाटर का पौधा सुख न जाये, ध्यान रखे की ज्यादा भी पानी ना दें |*.बिच बिच में मिट्टी को जड़ के आस पास उलट पुलट किया करे ताकि उसमें oxygen की मात्रा अच्छे से पहुच सकेऔर ज्यादा फल दें |यह कम समय में अच्छा मुनाफा देने वाला व्यापर है जो की dairy farming businessके साथ आसानी से किया जा सकता है और profit में बढ़ोतरी करने में मददगार साबित हो सकती है |Related posts:

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पहले आपको यह मालूम करना होगा की आप कितना टमाटर उगाना चाहते हैं और आपके पास कितनी भूमि उपलब्ध है | उसी के अनुसार आपको खाद, दवाई, मेहनत और समय देना होगा | वैसे तो टमाटर के business में काफी कम मेहनत लगता है परन्तु इसमें आपको अपना कीमती समय दे कर बिच बिच में निरक्षण करना होगा ताकि अच्छी पैदावार हो और आमदनी भी अच्छी हो | To chaliye dekhte hai tamatar ke business karne ke liye kin kin jankari aur chijoka hona jaruri hai:टमाटर में होने वाली बीमारियाँअर्धपतन– वैसे हर business और खेती में कुछ न कुछ रूकावटे होती है, जैसे टमाटर के खेतो में बीमारी होना जिसे अर्धपतन(aardhpatan) जो की खास कर ठंड के मौसम में होती है | इस बीमारी के होने पर मिटटी और टमाटर में फफूंद (fungus) लगजाते है और टमाटर पूरा ख़राब हो जाता है | इसके अलावे कई तरह के अन्य बिमारियों से बचाया जा सकता है | इसके साथ यह जल्द फैलने वालीबीमारी होती है जिसे रोकने के लिए उचित इंतजाम करना जरुरी है |Is bimari ko rokne kel iye Formaldehyde ka upgyog hota hai taki tamatar mein honi wali bimariyon ko roka jaa sakte | 50 लीटर पानी में 1 लीटर formaldehyde को ले कर मिला लें और इसे टमाटर लगाने के पहेले अपने खेतों में जरुरत के अनुसार इसका छिडकाव कर लें | इस तरह से छिड़काव करे की ताकि खेतो में 7 से 10centimeter तक गहरे तक यह भींग जाये | और इसे plastice चादर से ढक कर 2 से 3 दिनों के लिए छोड़ दें | और उसके बात मिटटी को उलट पलट कर के अगले दो दिनों तक छोड़ दे और फिर tamatar ke paudhe लगाना सुरु करें | ऐसा करने सेठंड के मौसम में होने वाली फफूंद से बचा जा सकता है | अधिक jankari के लिए आप नजदीकी कृषि विभाग में जा कर मिले |इसके अलावा एक और तरह की बीमारी होती है जिसमे टमाटर के पौधे अचानकसे मुरझाने लगते है और सुख जाते हैं | अगर इस तरह का लक्षण (lakshan) दिखता है तो आप बेवास्तिन का इस्तेमाल करे | इसके लिए 2 ग्राम बेवास्तीन को 1 लीटर पानी में मिला कर सीधे टमाटर के जड़ के पास पानी डाले और थोडा ऊपर से छिडकाव करे | ऐसा करने से इस बीमारी से बचा जा सकता है |Leaf Curl / पत्ते मरोड़ जाना– जैसा की बीमारी के नाम से ही जाना जा सकता है, इस बीमारी के होने पर tamatar ke patte मुड़ने लगते है और थोडा झुक जाते हैं | अगर ऐसा हो रहा हैतो समाज जायें की टमाटर के पौधे में Leaf Curl नामक बीमारी हो गयी है | ऐसा होने पर फौरन इस तरह के पौधे को निकाल कर, खेत से दूर, मिटटी की अन्दर दफ़न कर दें ताकि यह बीमारी दुसरे पौधे में ना फैले | अब Imidacloprid (17.8 % SL) दवा को लेकर (6 gram मात्रा) 1 लीटर पानी में मिला दें और पुरे खेतों में छिडकाव करें |किट पतंग से बचाव– टमाटर जब बढ़ने लगते है और उसमें टमाटर आने लगे तो किट पतंग और कीड़े टमाटर के तरफ आकर्षित होने लगते है और टमाटर को नुकसान पहुचाते है | इसके रोकथाम के लिए आप शुरू में ही हर 15 टमाटर के पौधे के बाद 1 गेंदा के पौधे को लगाये | जैसा कीआप जानते है, गेंदा के फूल से कई तरह की दवा बनती है और यह कीड़े कोआस पास आने से रोकता भी है | इसके अलावा खेत की boundry केपास भी हर 10 फिट पर एक गेंदा का पौदा लगा दें |टमाटर के बीजजब आप टमाटर के खेती करने जा रहे हो तो कोशिश करे की आप Tomato Pusa 120 का ही बीज (seeds) लें ताकि आपको ज्यादा से ज्यादा टमाटर की प्राप्ति हो | यह बीज market में आसानी से उपलब्ध है |150 से 175 ग्राम (gram) hybrid टमाटर के बीज 1हेक्टेयर (hectare) खेत के लिए काफी है | इससेो काफी अच्छी मात्र में टमाटर मिल सकते हैं |टमाटर के खेती के लिए खेत तैयार करेअब आप दो तरह से खेत तैयार कर सकते है, जो की निम्नलिखित हैं :*.सीधे जमें पर (flat / समतल)*.उठी हुई बेड / क्यारी बना कर – इसके मिटटी को 10 से 15 इंच तक उचा उठा कर बनाया जाता हैकोशिश करे की टमाटर को क्यारी / मेड / उचा बना कर ही लगवाए ताकि आपको नुक्सान कम हो और लाभ जायदा | इससे होने वाले टमाटर भी निचे जमीन पर नहीं टिकेंगे और पानी से सड़ने का भी डर नहीं रहेगा | ध्यानरहे की इस पर ज्यादा पानी नहीं डाले | इसमें खर पतवार भी कम उगते है और आपकी समय की भी बचत होगी |टमाटर खेती के लिए खाद तैयार करेअगर आप चाहते है की आपको टमाटर का अच्छा rate market में मिले तो कोशिश करे की जैविक खेती (organic farming) ही करे | इसके लिए आपको केवल अच्छे खाद की जरुरत पड़ेगी जो की आप आसानी से बना सकते हैं | खाद बनाए की विधि निचे दि गयी है :*.1 हेक्टेयर (hectare) में खेती करने के लिए आप35 kg गाय के गोबर (cow dung) को लें |*.अब इसे छायादार जगह में रख कर इसमें Trichoderma या Pseudomonasनामक formulationको अच्छे से मिला दें |*.अब इसे बोर से दाख़ दें |*.इसे हर 2 दिनों में ऊपर निचे पलटा करें*.इसे total 7 दिनों तक ही रखे और आपका आर्गेनिक खादतैयार है |इस organic khad को tamatar ke nurseryके लगाने के 2 दिन पहले मिला दें ताकि टमाटर को जरुरी चीजो की आपूर्ति हो सके और अच्छे से बढ़ सके |खेती शुरू करे अब आप टमाटर के nursery को लगा कर उसकी अच्छे से देखभाल करें|*.बिच बिच में निरक्षण कर के खर पतवार को निकाला दिया करें |*.पौधे की हर 3 दिनों में निरक्षण करें, किसी भी बीमारी को लक्षण दिखने पर उसकी तुरंत उपचार की सुरुवात कर दें|*.हो सके तो टमाटर के लतावों को ऊपर की और टांग दे ताकि अच्छे टमाटर ख़राब ना हो |*.समयानुसार सिचाई करते रहे ताकि टमाटर का पौधा सुख न जाये, ध्यान रखे की ज्यादा भी पानी ना दें |*.बिच बिच में मिट्टी को जड़ के आस पास उलट पुलट किया करे ताकि उसमें oxygen की मात्रा अच्छे से पहुच सकेऔर ज्यादा फल दें |यह कम समय में अच्छा मुनाफा देने वाला व्यापर है जो की dairy farming businessके साथ आसानी से किया जा सकता है और profit में बढ़ोतरी करने में मददगार साबित हो सकती है |Related posts:

पहले आपको यह मालूम करना होगा की आप कितना टमाटर उगाना चाहते हैं और आपके पास कितनी भूमि उपलब्ध है | उसी के अनुसार आपको खाद, दवाई, मेहनत और समय देना होगा | वैसे तो टमाटर के business में काफी कम मेहनत लगता है परन्तु इसमें आपको अपना कीमती समय दे कर बिच बिच में निरक्षण करना होगा ताकि अच्छी पैदावार हो और आमदनी भी अच्छी हो | To chaliye dekhte hai tamatar ke business karne ke liye kin kin jankari aur chijoka hona jaruri hai:टमाटर में होने वाली बीमारियाँअर्धपतन– वैसे हर business और खेती में कुछ न कुछ रूकावटे होती है, जैसे टमाटर के खेतो में बीमारी होना जिसे अर्धपतन(aardhpatan) जो की खास कर ठंड के मौसम में होती है | इस बीमारी के होने पर मिटटी और टमाटर में फफूंद (fungus) लगजाते है और टमाटर पूरा ख़राब हो जाता है | इसके अलावे कई तरह के अन्य बिमारियों से बचाया जा सकता है | इसके साथ यह जल्द फैलने वालीबीमारी होती है जिसे रोकने के लिए उचित इंतजाम करना जरुरी है |Is bimari ko rokne kel iye Formaldehyde ka upgyog hota hai taki tamatar mein honi wali bimariyon ko roka jaa sakte | 50 लीटर पानी में 1 लीटर formaldehyde को ले कर मिला लें और इसे टमाटर लगाने के पहेले अपने खेतों में जरुरत के अनुसार इसका छिडकाव कर लें | इस तरह से छिड़काव करे की ताकि खेतो में 7 से 10centimeter तक गहरे तक यह भींग जाये | और इसे plastice चादर से ढक कर 2 से 3 दिनों के लिए छोड़ दें | और उसके बात मिटटी को उलट पलट कर के अगले दो दिनों तक छोड़ दे और फिर tamatar ke paudhe लगाना सुरु करें | ऐसा करने सेठंड के मौसम में होने वाली फफूंद से बचा जा सकता है | अधिक jankari के लिए आप नजदीकी कृषि विभाग में जा कर मिले |इसके अलावा एक और तरह की बीमारी होती है जिसमे टमाटर के पौधे अचानकसे मुरझाने लगते है और सुख जाते हैं | अगर इस तरह का लक्षण (lakshan) दिखता है तो आप बेवास्तिन का इस्तेमाल करे | इसके लिए 2 ग्राम बेवास्तीन को 1 लीटर पानी में मिला कर सीधे टमाटर के जड़ के पास पानी डाले और थोडा ऊपर से छिडकाव करे | ऐसा करने से इस बीमारी से बचा जा सकता है |Leaf Curl / पत्ते मरोड़ जाना– जैसा की बीमारी के नाम से ही जाना जा सकता है, इस बीमारी के होने पर tamatar ke patte मुड़ने लगते है और थोडा झुक जाते हैं | अगर ऐसा हो रहा हैतो समाज जायें की टमाटर के पौधे में Leaf Curl नामक बीमारी हो गयी है | ऐसा होने पर फौरन इस तरह के पौधे को निकाल कर, खेत से दूर, मिटटी की अन्दर दफ़न कर दें ताकि यह बीमारी दुसरे पौधे में ना फैले | अब Imidacloprid (17.8 % SL) दवा को लेकर (6 gram मात्रा) 1 लीटर पानी में मिला दें और पुरे खेतों में छिडकाव करें |किट पतंग से बचाव– टमाटर जब बढ़ने लगते है और उसमें टमाटर आने लगे तो किट पतंग और कीड़े टमाटर के तरफ आकर्षित होने लगते है और टमाटर को नुकसान पहुचाते है | इसके रोकथाम के लिए आप शुरू में ही हर 15 टमाटर के पौधे के बाद 1 गेंदा के पौधे को लगाये | जैसा कीआप जानते है, गेंदा के फूल से कई तरह की दवा बनती है और यह कीड़े कोआस पास आने से रोकता भी है | इसके अलावा खेत की boundry केपास भी हर 10 फिट पर एक गेंदा का पौदा लगा दें |टमाटर के बीजजब आप टमाटर के खेती करने जा रहे हो तो कोशिश करे की आप Tomato Pusa 120 का ही बीज (seeds) लें ताकि आपको ज्यादा से ज्यादा टमाटर की प्राप्ति हो | यह बीज market में आसानी से उपलब्ध है |150 से 175 ग्राम (gram) hybrid टमाटर के बीज 1हेक्टेयर (hectare) खेत के लिए काफी है | इससेो काफी अच्छी मात्र में टमाटर मिल सकते हैं |टमाटर के खेती के लिए खेत तैयार करेअब आप दो तरह से खेत तैयार कर सकते है, जो की निम्नलिखित हैं :*.सीधे जमें पर (flat / समतल)*.उठी हुई बेड / क्यारी बना कर – इसके मिटटी को 10 से 15 इंच तक उचा उठा कर बनाया जाता हैकोशिश करे की टमाटर को क्यारी / मेड / उचा बना कर ही लगवाए ताकि आपको नुक्सान कम हो और लाभ जायदा | इससे होने वाले टमाटर भी निचे जमीन पर नहीं टिकेंगे और पानी से सड़ने का भी डर नहीं रहेगा | ध्यानरहे की इस पर ज्यादा पानी नहीं डाले | इसमें खर पतवार भी कम उगते है और आपकी समय की भी बचत होगी |टमाटर खेती के लिए खाद तैयार करेअगर आप चाहते है की आपको टमाटर का अच्छा rate market में मिले तो कोशिश करे की जैविक खेती (organic farming) ही करे | इसके लिए आपको केवल अच्छे खाद की जरुरत पड़ेगी जो की आप आसानी से बना सकते हैं | खाद बनाए की विधि निचे दि गयी है :*.1 हेक्टेयर (hectare) में खेती करने के लिए आप35 kg गाय के गोबर (cow dung) को लें |*.अब इसे छायादार जगह में रख कर इसमें Trichoderma या Pseudomonasनामक formulationको अच्छे से मिला दें |*.अब इसे बोर से दाख़ दें |*.इसे हर 2 दिनों में ऊपर निचे पलटा करें*.इसे total 7 दिनों तक ही रखे और आपका आर्गेनिक खादतैयार है |इस organic khad को tamatar ke nurseryके लगाने के 2 दिन पहले मिला दें ताकि टमाटर को जरुरी चीजो की आपूर्ति हो सके और अच्छे से बढ़ सके |खेती शुरू करे अब आप टमाटर के nursery को लगा कर उसकी अच्छे से देखभाल करें|*.बिच बिच में निरक्षण कर के खर पतवार को निकाला दिया करें |*.पौधे की हर 3 दिनों में निरक्षण करें, किसी भी बीमारी को लक्षण दिखने पर उसकी तुरंत उपचार की सुरुवात कर दें|*.हो सके तो टमाटर के लतावों को ऊपर की और टांग दे ताकि अच्छे टमाटर ख़राब ना हो |*.समयानुसार सिचाई करते रहे ताकि टमाटर का पौधा सुख न जाये, ध्यान रखे की ज्यादा भी पानी ना दें |*.बिच बिच में मिट्टी को जड़ के आस पास उलट पुलट किया करे ताकि उसमें oxygen की मात्रा अच्छे से पहुच सकेऔर ज्यादा फल दें |यह कम समय में अच्छा मुनाफा देने वाला व्यापर है जो की dairy farming businessके साथ आसानी से किया जा सकता है और profit में बढ़ोतरी करने में मददगार साबित हो सकती है |Related posts:

पहले आपको यह मालूम करना होगा की आप कितना टमाटर उगाना चाहते हैं और आपके पास कितनी भूमि उपलब्ध है | उसी के अनुसार आपको खाद, दवाई, मेहनत और समय देना होगा | वैसे तो टमाटर के business में काफी कम मेहनत लगता है परन्तु इसमें आपको अपना कीमती समय दे कर बिच बिच में निरक्षण करना होगा ताकि अच्छी पैदावार हो और आमदनी भी अच्छी हो | To chaliye dekhte hai tamatar ke business karne ke liye kin kin jankari aur chijoka hona jaruri hai:टमाटर में होने वाली बीमारियाँअर्धपतन– वैसे हर business और खेती में कुछ न कुछ रूकावटे होती है, जैसे टमाटर के खेतो में बीमारी होना जिसे अर्धपतन(aardhpatan) जो की खास कर ठंड के मौसम में होती है | इस बीमारी के होने पर मिटटी और टमाटर में फफूंद (fungus) लगजाते है और टमाटर पूरा ख़राब हो जाता है | इसके अलावे कई तरह के अन्य बिमारियों से बचाया जा सकता है | इसके साथ यह जल्द फैलने वालीबीमारी होती है जिसे रोकने के लिए उचित इंतजाम करना जरुरी है |Is bimari ko rokne kel iye Formaldehyde ka upgyog hota hai taki tamatar mein honi wali bimariyon ko roka jaa sakte | 50 लीटर पानी में 1 लीटर formaldehyde को ले कर मिला लें और इसे टमाटर लगाने के पहेले अपने खेतों में जरुरत के अनुसार इसका छिडकाव कर लें | इस तरह से छिड़काव करे की ताकि खेतो में 7 से 10centimeter तक गहरे तक यह भींग जाये | और इसे plastice चादर से ढक कर 2 से 3 दिनों के लिए छोड़ दें | और उसके बात मिटटी को उलट पलट कर के अगले दो दिनों तक छोड़ दे और फिर tamatar ke paudhe लगाना सुरु करें | ऐसा करने सेठंड के मौसम में होने वाली फफूंद से बचा जा सकता है | अधिक jankari के लिए आप नजदीकी कृषि विभाग में जा कर मिले |इसके अलावा एक और तरह की बीमारी होती है जिसमे टमाटर के पौधे अचानकसे मुरझाने लगते है और सुख जाते हैं | अगर इस तरह का लक्षण (lakshan) दिखता है तो आप बेवास्तिन का इस्तेमाल करे | इसके लिए 2 ग्राम बेवास्तीन को 1 लीटर पानी में मिला कर सीधे टमाटर के जड़ के पास पानी डाले और थोडा ऊपर से छिडकाव करे | ऐसा करने से इस बीमारी से बचा जा सकता है |Leaf Curl / पत्ते मरोड़ जाना– जैसा की बीमारी के नाम से ही जाना जा सकता है, इस बीमारी के होने पर tamatar ke patte मुड़ने लगते है और थोडा झुक जाते हैं | अगर ऐसा हो रहा हैतो समाज जायें की टमाटर के पौधे में Leaf Curl नामक बीमारी हो गयी है | ऐसा होने पर फौरन इस तरह के पौधे को निकाल कर, खेत से दूर, मिटटी की अन्दर दफ़न कर दें ताकि यह बीमारी दुसरे पौधे में ना फैले | अब Imidacloprid (17.8 % SL) दवा को लेकर (6 gram मात्रा) 1 लीटर पानी में मिला दें और पुरे खेतों में छिडकाव करें |किट पतंग से बचाव– टमाटर जब बढ़ने लगते है और उसमें टमाटर आने लगे तो किट पतंग और कीड़े टमाटर के तरफ आकर्षित होने लगते है और टमाटर को नुकसान पहुचाते है | इसके रोकथाम के लिए आप शुरू में ही हर 15 टमाटर के पौधे के बाद 1 गेंदा के पौधे को लगाये | जैसा कीआप जानते है, गेंदा के फूल से कई तरह की दवा बनती है और यह कीड़े कोआस पास आने से रोकता भी है | इसके अलावा खेत की boundry केपास भी हर 10 फिट पर एक गेंदा का पौदा लगा दें |टमाटर के बीजजब आप टमाटर के खेती करने जा रहे हो तो कोशिश करे की आप Tomato Pusa 120 का ही बीज (seeds) लें ताकि आपको ज्यादा से ज्यादा टमाटर की प्राप्ति हो | यह बीज market में आसानी से उपलब्ध है |150 से 175 ग्राम (gram) hybrid टमाटर के बीज 1हेक्टेयर (hectare) खेत के लिए काफी है | इससेो काफी अच्छी मात्र में टमाटर मिल सकते हैं |टमाटर के खेती के लिए खेत तैयार करेअब आप दो तरह से खेत तैयार कर सकते है, जो की निम्नलिखित हैं :*.सीधे जमें पर (flat / समतल)*.उठी हुई बेड / क्यारी बना कर – इसके मिटटी को 10 से 15 इंच तक उचा उठा कर बनाया जाता हैकोशिश करे की टमाटर को क्यारी / मेड / उचा बना कर ही लगवाए ताकि आपको नुक्सान कम हो और लाभ जायदा | इससे होने वाले टमाटर भी निचे जमीन पर नहीं टिकेंगे और पानी से सड़ने का भी डर नहीं रहेगा | ध्यानरहे की इस पर ज्यादा पानी नहीं डाले | इसमें खर पतवार भी कम उगते है और आपकी समय की भी बचत होगी |टमाटर खेती के लिए खाद तैयार करेअगर आप चाहते है की आपको टमाटर का अच्छा rate market में मिले तो कोशिश करे की जैविक खेती (organic farming) ही करे | इसके लिए आपको केवल अच्छे खाद की जरुरत पड़ेगी जो की आप आसानी से बना सकते हैं | खाद बनाए की विधि निचे दि गयी है :*.1 हेक्टेयर (hectare) में खेती करने के लिए आप35 kg गाय के गोबर (cow dung) को लें |*.अब इसे छायादार जगह में रख कर इसमें Trichoderma या Pseudomonasनामक formulationको अच्छे से मिला दें |*.अब इसे बोर से दाख़ दें |*.इसे हर 2 दिनों में ऊपर निचे पलटा करें*.इसे total 7 दिनों तक ही रखे और आपका आर्गेनिक खादतैयार है |इस organic khad को tamatar ke nurseryके लगाने के 2 दिन पहले मिला दें ताकि टमाटर को जरुरी चीजो की आपूर्ति हो सके और अच्छे से बढ़ सके |खेती शुरू करे अब आप टमाटर के nursery को लगा कर उसकी अच्छे से देखभाल करें|*.बिच बिच में निरक्षण कर के खर पतवार को निकाला दिया करें |*.पौधे की हर 3 दिनों में निरक्षण करें, किसी भी बीमारी को लक्षण दिखने पर उसकी तुरंत उपचार की सुरुवात कर दें|*.हो सके तो टमाटर के लतावों को ऊपर की और टांग दे ताकि अच्छे टमाटर ख़राब ना हो |*.समयानुसार सिचाई करते रहे ताकि टमाटर का पौधा सुख न जाये, ध्यान रखे की ज्यादा भी पानी ना दें |*.बिच बिच में मिट्टी को जड़ के आस पास उलट पुलट किया करे ताकि उसमें oxygen की मात्रा अच्छे से पहुच सकेऔर ज्यादा फल दें |यह कम समय में अच्छा मुनाफा देने वाला व्यापर है जो की dairy farming businessके साथ आसानी से किया जा सकता है और profit में बढ़ोतरी करने में मददगार साबित हो सकती है |Related posts:

Tomatoes Farming....

पहले आपको यह मालूम करना होगा की आप कितना टमाटर उगाना चाहते हैं और आपके पास कितनी भूमि उपलब्ध है | उसी के अनुसार आपको खाद, दवाई, मेहनत और समय देना होगा | वैसे तो टमाटर के business में काफी कम मेहनत लगता है परन्तु इसमें आपको अपना कीमती समय दे कर बिच बिच में निरक्षण करना होगा ताकि अच्छी पैदावार हो और आमदनी भी अच्छी हो | To chaliye dekhte hai tamatar ke business karne ke liye kin kin jankari aur chijoka hona jaruri hai:टमाटर में होने वाली बीमारियाँअर्धपतन– वैसे हर business और खेती में कुछ न कुछ रूकावटे होती है, जैसे टमाटर के खेतो में बीमारी होना जिसे अर्धपतन(aardhpatan) जो की खास कर ठंड के मौसम में होती है | इस बीमारी के होने पर मिटटी और टमाटर में फफूंद (fungus) लगजाते है और टमाटर पूरा ख़राब हो जाता है | इसके अलावे कई तरह के अन्य बिमारियों से बचाया जा सकता है | इसके साथ यह जल्द फैलने वालीबीमारी होती है जिसे रोकने के लिए उचित इंतजाम करना जरुरी है |Is bimari ko rokne kel iye Formaldehyde ka upgyog hota hai taki tamatar mein honi wali bimariyon ko roka jaa sakte | 50 लीटर पानी में 1 लीटर formaldehyde को ले कर मिला लें और इसे टमाटर लगाने के पहेले अपने खेतों में जरुरत के अनुसार इसका छिडकाव कर लें | इस तरह से छिड़काव करे की ताकि खेतो में 7 से 10centimeter तक गहरे तक यह भींग जाये | और इसे plastice चादर से ढक कर 2 से 3 दिनों के लिए छोड़ दें | और उसके बात मिटटी को उलट पलट कर के अगले दो दिनों तक छोड़ दे और फिर tamatar ke paudhe लगाना सुरु करें | ऐसा करने सेठंड के मौसम में होने वाली फफूंद से बचा जा सकता है | अधिक jankari के लिए आप नजदीकी कृषि विभाग में जा कर मिले |इसके अलावा एक और तरह की बीमारी होती है जिसमे टमाटर के पौधे अचानकसे मुरझाने लगते है और सुख जाते हैं | अगर इस तरह का लक्षण (lakshan) दिखता है तो आप बेवास्तिन का इस्तेमाल करे | इसके लिए 2 ग्राम बेवास्तीन को 1 लीटर पानी में मिला कर सीधे टमाटर के जड़ के पास पानी डाले और थोडा ऊपर से छिडकाव करे | ऐसा करने से इस बीमारी से बचा जा सकता है |Leaf Curl / पत्ते मरोड़ जाना– जैसा की बीमारी के नाम से ही जाना जा सकता है, इस बीमारी के होने पर tamatar ke patte मुड़ने लगते है और थोडा झुक जाते हैं | अगर ऐसा हो रहा हैतो समाज जायें की टमाटर के पौधे में Leaf Curl नामक बीमारी हो गयी है | ऐसा होने पर फौरन इस तरह के पौधे को निकाल कर, खेत से दूर, मिटटी की अन्दर दफ़न कर दें ताकि यह बीमारी दुसरे पौधे में ना फैले | अब Imidacloprid (17.8 % SL) दवा को लेकर (6 gram मात्रा) 1 लीटर पानी में मिला दें और पुरे खेतों में छिडकाव करें |किट पतंग से बचाव– टमाटर जब बढ़ने लगते है और उसमें टमाटर आने लगे तो किट पतंग और कीड़े टमाटर के तरफ आकर्षित होने लगते है और टमाटर को नुकसान पहुचाते है | इसके रोकथाम के लिए आप शुरू में ही हर 15 टमाटर के पौधे के बाद 1 गेंदा के पौधे को लगाये | जैसा कीआप जानते है, गेंदा के फूल से कई तरह की दवा बनती है और यह कीड़े कोआस पास आने से रोकता भी है | इसके अलावा खेत की boundry केपास भी हर 10 फिट पर एक गेंदा का पौदा लगा दें |टमाटर के बीजजब आप टमाटर के खेती करने जा रहे हो तो कोशिश करे की आप Tomato Pusa 120 का ही बीज (seeds) लें ताकि आपको ज्यादा से ज्यादा टमाटर की प्राप्ति हो | यह बीज market में आसानी से उपलब्ध है |150 से 175 ग्राम (gram) hybrid टमाटर के बीज 1हेक्टेयर (hectare) खेत के लिए काफी है | इससेो काफी अच्छी मात्र में टमाटर मिल सकते हैं |टमाटर के खेती के लिए खेत तैयार करेअब आप दो तरह से खेत तैयार कर सकते है, जो की निम्नलिखित हैं :*.सीधे जमें पर (flat / समतल)*.उठी हुई बेड / क्यारी बना कर – इसके मिटटी को 10 से 15 इंच तक उचा उठा कर बनाया जाता हैकोशिश करे की टमाटर को क्यारी / मेड / उचा बना कर ही लगवाए ताकि आपको नुक्सान कम हो और लाभ जायदा | इससे होने वाले टमाटर भी निचे जमीन पर नहीं टिकेंगे और पानी से सड़ने का भी डर नहीं रहेगा | ध्यानरहे की इस पर ज्यादा पानी नहीं डाले | इसमें खर पतवार भी कम उगते है और आपकी समय की भी बचत होगी |टमाटर खेती के लिए खाद तैयार करेअगर आप चाहते है की आपको टमाटर का अच्छा rate market में मिले तो कोशिश करे की जैविक खेती (organic farming) ही करे | इसके लिए आपको केवल अच्छे खाद की जरुरत पड़ेगी जो की आप आसानी से बना सकते हैं | खाद बनाए की विधि निचे दि गयी है :*.1 हेक्टेयर (hectare) में खेती करने के लिए आप35 kg गाय के गोबर (cow dung) को लें |*.अब इसे छायादार जगह में रख कर इसमें Trichoderma या Pseudomonasनामक formulationको अच्छे से मिला दें |*.अब इसे बोर से दाख़ दें |*.इसे हर 2 दिनों में ऊपर निचे पलटा करें*.इसे total 7 दिनों तक ही रखे और आपका आर्गेनिक खादतैयार है |इस organic khad को tamatar ke nurseryके लगाने के 2 दिन पहले मिला दें ताकि टमाटर को जरुरी चीजो की आपूर्ति हो सके और अच्छे से बढ़ सके |खेती शुरू करे अब आप टमाटर के nursery को लगा कर उसकी अच्छे से देखभाल करें|*.बिच बिच में निरक्षण कर के खर पतवार को निकाला दिया करें |*.पौधे की हर 3 दिनों में निरक्षण करें, किसी भी बीमारी को लक्षण दिखने पर उसकी तुरंत उपचार की सुरुवात कर दें|*.हो सके तो टमाटर के लतावों को ऊपर की और टांग दे ताकि अच्छे टमाटर ख़राब ना हो |*.समयानुसार सिचाई करते रहे ताकि टमाटर का पौधा सुख न जाये, ध्यान रखे की ज्यादा भी पानी ना दें |*.बिच बिच में मिट्टी को जड़ के आस पास उलट पुलट किया करे ताकि उसमें oxygen की मात्रा अच्छे से पहुच सकेऔर ज्यादा फल दें |यह कम समय में अच्छा मुनाफा देने वाला व्यापर है जो की dairy farming businessके साथ आसानी से किया जा सकता है और profit में बढ़ोतरी करने में मददगार साबित हो सकती है |Related posts: