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Monday 29 March 2021

मक्का की खेती

Akash Pathak: मक्का भारत में गेहूं के बाद उगाया जाने वाली दूसरी महत्वपूर्ण फ़सल है। हमारे देश के अधिकांश मैदानी भागों से लेकर 2700 मीटर ऊंचाई वाले पहाड़ी क्षेत्रों तक मक्का सफलतापूर्वक उगाया जाता है। यह एक बहुपयोगी फ़सल है क्योंकि मनुष्य और पशुओं के आहार का प्रमुख अवयव होने के साथ ही औद्योगिक दृष्टिकोण से भी यह महत्वपूर्ण भी है। भारत में इस फ़सल के खेती लगभग 1600 ई० के अन्त में ही शुरू की गई और वर्तमान में भारत संसार के प्रमुख उत्पादक देशों में एक है। भारत में मक्का की विविध क़िस्में उत्पन्न की जाती है जो कि शायद ही किसी अन्य देश में सम्भव हो। इसका प्रमुख कारण भारत की जलवायु की विविधता हैं। कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और विटामिनों से भरपूर मक्का शरीर के लिए ऊर्जा का अच्छा स्त्रोत है साथ ही बेहद सुपाच्य भी. इसके साथ मक्का शरीर के लिए आवश्यक खनिज तत्वों जैसे कि फ़ासफ़ोरस, मैग्निशियम, मैगनिज, ज़िंक, कॉपर, आयरन इत्यादि से भी भरपूर फ़सल है। ये भी पढ़ें : मैक्सिको से आया मक्का, चीन से आया चावल, जानें कहां से आया कौन सा खाना भारत में मक्का की खेती तीन ऋतुओं में की जा सकती है, ख़रीफ़ (जून से जुलाई), रबी (अक्टूबर से नवम्बर) एवं ज़ायद (फ़रवरी से मार्च)। यह समय मक्का की बुवाई के लिए खेतों को तैयार करने का उचित समय है। मानसून का आरम्भ अर्थात वर्षा के आगमन के साथ मक्का बोना चाहिए, परंतु अगर सिंचाई के पर्याप्त साधन हो तो 10-15 दिन पहले भी बुवाई की जा सकती है। बीज की बुवाई मेड़ के किनारे व ऊपर 3-5 सेमी. की गहराई पर करनी चाहिए। बुवाई के एक माह बाद मिट्टी चढ़ाने का कार्य करना चाहिए। बीज को बोने से पहले किसी फंफूदनाशक दवा जैसे थायरम या एग्रोसेन जी.एन. 2.5-3 ग्राम प्रति किलो बीज के दर से उपचारित करके बोना चाहिए। बीज को एजोस्पाइरिलम या पी.एस.बी.कल्चर (5-10 ग्राम प्रति किलो बीज) से उपचारित करना चाहिए। पौधे लगाते हुए उनके बीच की दूरी का ध्यान रखना भी आवश्यक है। बीज को बोने के दौरान पौधों में अंतर लगाए जाने वाली प्रजाति के अनुसार होना चाहिए उदाहरण के लिए शीघ्र पकने वाली प्रजातियों (70-75 दिन) में कतार से कतार में 60 सेमी. एवं पौधे से पौधे-20 सेमी., मध्यम/देरी से पकने वाली प्रजातियों के लिए कतार से कतार-75 सेमी. पौधे से पौधे-25 सेमी. और हरे चारे के लिए कतार से कतार: 40 सेमी. और पौधे से पौधे में 25 सेमी. की दूरी रखना उचित रहता है। मक्का की क़िस्में अवधि के आधार पर मक्का की क़िस्मों को निम्न चार प्रकार में बाटा गया है: अति शीघ्र पकने वाली किस्में (75 दिन से कम)- जवाहर मक्का-8, विवेक-4, विवेक-17, विवेक-43, विवेक-42, प्रताप हाइब्रिड मक्का-1. शीघ्र पकने वाली किस्में- (85 दिन से कम)- जवाहर मक्का-12, अमर, आजाद कमल, पंत संकुल मक्का-3, चन्द्रमणी, प्रताप-3, विकास मक्का-421, हिम-129, डीएचएम-107, डीएचएम-109, पूसा अरली हाइब्रिड मक्का-1, पूसा अरली हाइब्रिड मक्का-2, प्रकाश, पी.एम.एच-5, प्रो-368, एक्स-3342, डीके सी-7074, जेकेएमएच-175, हाईशेल एवं बायो-9637. मध्यम अवधि मे पकने वाली किस्में (95 दिन से कम)- जवाहर मक्का-216, एचएम-10, एचएम-4, प्रताप-5, पी-3441, एनके-21, केएमएच-3426, केएमएच-3712, एनएमएच-803 , बिस्को-2418 देरी की अवधि मे पकने वाली (95 दिन से अधिक )- गंगा-11, त्रिसुलता, डेक्कन-101, डेक्कन-103, डेक्कन-105, एचएम-11, एचक्यूपीएम-4, सरताज, प्रो-311, बायो-9681, सीड टैक-2324, बिस्को-855, एनके 6240, एसएमएच-3904. ये भी पढ़ें : इस समय करें सांवा, कोदो जैसे मोटे अनाजों की खेती, बिना सिंचाई के मिलेगा बढ़िया उत्पादन खेत की तैयारी ऐसे करें भूमि की तैयारी करते समय 5 से 8 टन अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद खेत मे मिलाना चाहिए और भूमि परीक्षण उपरांत जहां जस्ते की कमी हो वहां 25 किग्रा प्रति हेक्टेयर जिंक सल्फेट वर्षा से पूर्व डालना चाहिए। खेतों में डाले जाने वाले खाद व उर्वरक की मात्रा भी चुनी हुयी प्रजाति पर ही निर्भर करती है जो निन्मवत है: शीघ्र पकने वाली क़िस्मों के लिए :- 80 : 50 : 30 (N:P:K) मध्यम पकने वाली क़िस्मों के लिए:- 120 : 60 : 40 (N:P:K) देरी से पकने वाली क़िस्मों के लिए:- 120 : 75 : 50 (N:P:K) मक्का की खेती के दौरान खाद व उर्वरक की सही विधि अपनाने से मक्का की वृद्धि और उत्पादन दोनों को ही फ़ायदा होता है। जैसे कि डाली जाने वाली पूरी नाइट्रोजन की मात्रा का तीसरा भाग बुआई के समय, दूसरा भाग लगभग एक माह बाद साइड ड्रेसिंग के रूप में, तथा तीसरा और अंतिम भाग नरपुष्पों के आने से पहले। फ़ोसफ़ोरस और पोटाश दोनों की पूरी मात्रा को बुआई कि समय मिट्टी में डालना चाहिए जिससे ये पौधों के जड़ो से होकर पौधों में पहुँच सके और उनकी वृद्धि में अपना योगदान दे सकें। ये भी पढ़ें : दो सौ रुपए का नील-हरित शैवाल बचाएगा आपके हज़ारों रुपए सिंचाई मक्के के फ़सल को अपने पूरे फ़सल अवधि में 400-600 मिमी. पानी की आवश्यकता होती है। पानी देने की महत्वपूर्ण अवस्था पुष्पों के आने और दानों के भरने का समय होता है अतः इस बात का ध्यान रखने की आवश्यकता है। मक्के के खेत में 15 से 20 व 25 से 30 दिनों तक खर-पतवार नियंत्रण व निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। खरपतवार को निकलते वक़्त इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वो जड़ से नष्ट हो, बीच से टूटने से वो और तीव्रता से बढ़ते हैं। मक्का एक ऐसी फ़सल है जिसके साथ अंतरवर्ती फ़सले भी उगायी जा सकती हैं, जैसे उरद, बोरो या बरबटी, मूँग, सोयाबीन, तिल, सेम इत्यादि। मौसम के अनुसार अंतरवर्ती फ़सल के रूप में सब्ज़ियों को उगा सकते है जो किसानों के लिए वैकल्पिक आय का माध्यम बन सकता है। कटाई और भंडारण प्रजाति के आधार पर फ़सल के कटाई की अवधि होती है, जैसे चारे वाली फ़सल को बोने के 60-65 दिन बाद, दाने वाली देशी क़िस्म बोने के 75-85 दिन बाद, व संकर और संकुल क़िस्म बोने के 90-115 दिन बाद काटना होता है। कटाई के समय दानों में लगभग 25 प्रतिशत तक नमी रहती हैं। ये भी पढ़ें : कम पानी में धान की ज्यादा उपज के लिए करें धान की सीधी बुवाई कटाई के बाद मक्का फ़सल में सबसे महत्वपूर्ण कार्य गहाई है इसमें दाने निकालने के लिये सेलर का उपयोग किया जाता है। सेलर नहीं होने की अवस्था में साधारण थ्रेशर में सुधार कर मक्का की गहाई की जा सकती है इसमें मक्के के भुट्टे के छिलके निकालने की आवश्यकता नहीं है। कटाई व गहाई के पश्चात प्राप्त दानों को धूप में अच्छी तरह सुखाकर भण्डारित करना चाहिए। दानों को बीज के रूप में भंडारण करने के लिए इन्हें इतना सुखा लेना चाहिए कि नमी करीब 12 प्रतिशत रहे। "लेखिका डॉ. प्रीति उपाध्याय उत्तर प्रदेश के बलिया जिले की निवासी हैं। विज्ञान में स्नातक, इलाहाबाद कृषि संस्थान से आनुवांशिकी एवं पादप प्रजनन में परास्नातक एवं बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के कृषि संस्थान से 'आनुवांशिकी एवं पादप प्रजनन' में डॉक्टरेट की डिग्री लेने के बाद आजकल दिल्ली विश्वविद्यालय में कृषि आनुवांशिकी के क्षेत्र में अनुसंधानरत हैं।" मिट्टी के लिए जागरूकता अभियान: आईपीएस ने साइकिल रैली में भाग लेकर कहा- वैज्ञानिक विधि से खेती करें किसान ये कार्यक्रम देश के ग्रामीण मीडिया संस्थान गाँव कनेक्शन और कृषि क्षेत्र में काम कर रही संस्था कृषि तंत्रा की साझा मुहिम के तहत आयोजित किया गया। किसानों से सरोकार रखने वाले दोनों संस्थान मिलकर किसानों को जागरूक करने के लिए 11 राज्यों में रैली का आयोजन कर रहे हैं। कश्मीर से शुरू हुई ये रैली 40 दिनों बाद कन्याकुमारी में समाप्त होगी। By - Mohit ShuklaUpdate: 2021-03-28 11:37 GMT मिट्टी के लिए जागरूकता अभियान: आईपीएस ने साइकिल रैली में भाग लेकर कहा- वैज्ञानिक विधि से खेती करें किसान कबीरधाम (छत्तीसगढ़)। मिट्टी की सेहत, मृदा संरक्षण और मिट्टी की जांच के प्रति लोगों को जागरुक करने के लिए छत्तीसगढ़ में आयोजित समारोह में लोगों ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। कबीरधाम जिले के महली में हुए इस समारोह छत्तीसगढ़ आर्म्ड पुलिस फोर्स के कमान्डेंट जितेंद्र शुक्ल और जिले के पुलिस अधीक्षक शलभ कुमार सिन्हा ने कई किलोमीटर साइकिल चलाकर जागरुकता अभियान को आगे बढ़ाया। छत्तीसगढ़ में कबीरधाम जिले के महली ग्राम पंचायत में 24 मार्च को गांव कनेक्शन और कृषि क्षेत्र में कार्यरत संस्था कृषतंत्रा (Krishritantra) के साझा प्रयास से मिट्टी संरक्षण जागरुकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया। समारोह में भाग लेने पहुंचे छत्तीसगढ़ आर्म्ड पुलिस फोर्स में 17वीं बटालियन के कमांडेंट जितेंद्र शुक्ल ने कहा कि खेती करना आसान काम नहीं हैं इसके लिए कृषि क्षेत्र में जानकारी हासिल करना बहुत जरूरी है। ये कार्यक्रम देश के ग्रामीण मीडिया संस्थान गाँव कनेक्शन और कृषि क्षेत्र में काम कर रही संस्था कृषि तंत्रा की साझा मुहिम के तहत आयोजित किया गया था। किसानों से सरोकार रखने वाले दोनों संस्थान मिलकर किसानों को जागरूक करने के लिए 11 राज्यों में रैली का आयोजन कर रहे हैं। कश्मीर से शुरू हुई ये रैली 40 दिनों बाद कन्याकुमारी में समाप्त होगी। जागरुकता अभियान की शुरुआत तीन मार्च को शेर-ए- कश्मीर यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर साइंस एंड टेक्नोलॉजी जम्मू-कश्मीर के कुलपति प्रो जेपी शर्मा ने हरी झंडी दिखाकर किया था। अब यह साइकिल रैली कश्मीर से लेकर उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, राजस्थान, गुजरात, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र आदि राज्यों से होते हुए 40 दिन के बाद कन्याकुमारी में खत्म होगी। जम्मू-कश्मीर में ही कृषि तंत्रा द्वारा निर्मित अत्याधुनिक स्वाइल टेस्टिंग मशीन कृषि रास्ता को भी किसानों के लिए सार्वजनिक किया गया था। छत्तीसगढ़ में आयोजित समारोह के अवसर पर कृषि तंत्रा के एरिया सेल्स मैनेजर अक्षय हेगड़े ने मुख्य अतिथि आईपीएस जितेंद्र शुक्ल व आईपीएस शलभ कुमार सिन्हा का बुके देकर स्वागत किया और स्मृति चिन्ह भेंट किए। समारोह में आसपास के गांवों के 200 से ज्यादा किसान और युवा शामिल हुए। इस दौरान आईपीएस जितेंद्र शुक्ल और आईपीएस शलभ कुमार ने खुद युवाओं के साथ 5 किलोमीटर से ज्यादा साइकिल चलाई। इस रैली के माध्यम से किसानों में मृदा संरक्षण को लेकर जागरूकता फैलाई जा रही है। जिससे किसान अपने खेतों में बेरोकटोक रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग न करके वैज्ञानिक विधि से मृदा स्वाथ्य के अनुसार ही उर्वरक का प्रयोग करें इसको लेकर महा अभियान चलाया जा रहा है। कार्यक्रम के जरिए लोगों को बिना जांच के अंधाधुंध रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग के नुकसान और मिट्टी की गिरती सेहत के प्रति किसानों को सचेत किया जाता है। समारोह में आए किसानों को संबोधित करते हुए विशिष्ट अतिथि कबीरधाम जिले के एसपी शलभ कुमार सिन्हा ने कहा, "जैसा कि अब मिट्टी के परीक्षण के लिये किसानों को राजनांदगांव नहीं जाना पड़ेगा। अब उनके गांव महली में ही तुरंत मिट्टी की जांच हो सकेगी। किसान भी अपनी रुचि इसके प्रति दिखाएं और आधुनिक तकनीक से खेती करें यही मेरा सभी से आग्रह है।" समारोह में शामिल हुए वीपीएन किसान डेवलपमेंट आर्गनाइजेशन के अध्यक्ष प्रियजीत बोस ने किसानों को संबोधित करते हुए कहा अभी तक किसान मिट्टी की जांच कराने के किये राजनादगांव को जाते थे,वहां उनको महीनों इंतजार करना पड़ता था। फसल पक कर के तैयार हो जाती थी लेकिन उसके बावजूद भी किसानों को जांच रिपोर्ट नही मिलती थी। ऐसे में कृषि तंत्रा की मशीन से किसान तुरंत अपनी जांच करवा सकेंगे।"
कृषि रास्ता स्वाइल टेस्टिंग मशीन की खूबियां कृषि तंत्र द्वारा निर्मित की गई 'कृषि रास्ता' महज 50 मिनट में 12 प्रकार के परीक्षण करके उसके रिजल्ट बता देती है। जबकि सामान्य मशीनें तीन तरह की चांच ही करती हैं और उनके नतीजें आने में काफी दिन लगते हैं। जबकि कृषि रास्ता जिंक, कॉपर, सल्फ़र, कार्बन, आयरन, बोरान, पोटेशियम आदि की तुरंत जांच कर रिजल्ट देती है। जांच रिपोर्ट के साथ ही कृषि वैज्ञानिक मुफ्त सलाह देते हैं। केंद्र सरकार की मृदा स्वास्थ्य कार्ड केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने फरवरी 2021 में लोकसभा में कहा कि साल 2015-17 के बीच पहले चरण में 10.74 लाख किसानों को मृदा कार्ड दिए गए थे तो 2017-19 के बीच दूसरे चरण में 11.93 किसानों को मृदा कार्ड दिए गए। साल 2019-20 के दौरान मॉडल ग्राम का कार्यन्वयन कर प्रत्येक ब्लॉक से एक 6954 गांवों से नमूने लेकर जागरुकता कार्यक्रम चलाए गए जबकि 2020-21 के दौरान जागरूकता कार्यक्रमों को बढ़ाने के लिए 98530 गांवों में प्रदर्शन और किसान परीक्षण का आयोजन का निर्यण लिया गया है। केंद्रीय कृषि मंत्री ने बताया कि मृदा परीक्षण समेकित पोषण प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिए योजना अगले वित्त वर्ष में भी जारी रहेगी। वर्ष 2021-21 का अनुमान बजट 324.43 करोड़ रुपए है। Also Read:मृदा संरक्षण जागरूकता अभियान: 'माटी बोल पाती तो अपने साथ हो रहे अन्याय का विरोध करती'